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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1 पवरमणिरयणरुहरं वंतरदेवेहिं सालमज्झमि । सिंहासणं उविज्जइ सपायपीढं सुरमणिजं ॥ ६ ॥ तस्सोवरिं विउच्च सको उम्मिल्लपल्लवसिरिलं । जिणदेहाउ दुवालसगुणियं कंकेलिपवरतरं ॥ ७ ॥ ईसाणसुरिंदो निम्मवेह लंवंतमोत्तियसरीयं । छणमयलंछणधवलं फलिहदंडं च छत्ततिगं ॥ ८ ॥ हेट्ठामुइटियविंटा रुंतुद्दाममहुयरसणाहा । आजाणु कुसुमवुट्ठी निवडइ गयणाओ वरगंधा ॥ ९ ॥ सवरयणामयाइं विचित्तकररइयसकचावाई । रेहंति तोरणारं नववंदणमालकलियाई ॥ १० ॥ मंदरमहियमहोयहिरवगंभीराई तियसनिवहेग । दिसि दिसि पहयाई चउविहारं तुराई दिघाई ॥ ११ ॥ पवणुद्धय खीरोयहिम हलकल्लोलविग्भमेहिं नहं । छाइजर धयनिवहेहिं वेजयंतीसएहिं च ॥ १२ ॥ मयरंदुद्दामसह स्सपत्त की लंतहंसमिहुणाओ । पडिगोउरं वराओ पोक्खरिणीओ य कीरंति ॥ १३ ॥ मिच्छत्तसत्तुविक्खो भदक्खमक्खंडभाणुबिंबसमं । जंतूण य कमलोवरि ठाविजइ धम्मवरचकं ॥ १४ ॥ देवच्छंद पमुहं अन्नंपि जमेत्थ होइ कायवं । बंतरसुरेहिं कीरह पहिहियएहिं तं सर्व्वं ॥ १५ ॥ इय नियनिय अहिगाराणुरूवओ विरइयंमि ओसरणे । जिणरविभीयच निसा निन्नट्ठा तक्खणं चैव ॥ १६ ॥ एत्यंतरे सायरसुरखयरनमंसिज्जमाणो माणाइरित्तगुणरयणावासो वासवनिदंसिज्जमानमग्गो मग्गाणुलग्गमवजणजणियपरितोसो तोसरोसपरिवज्जियगत्तो गत्तसमभवपडंतजणसमुद्धरणपरो परमकरुणरस निधवियजयजणदुहज For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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