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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच ५प्रस्ताव: ॥१४८॥ वर्षाकाले विहार अभिग्रहाः एत्तो चिय अन्नेहिवि परपीडावजगंमि जइयो । जहसत्तीए एवं जम्हा सद्धम्मसारोत्ति ॥ १२ ॥ एयं चेव भगवया वेरग्गकारणमुबहतेण तिवा पंच अभिग्गहा गहिया, तंजहा-अचियत्तकारए उग्गहमि न वसियवं, निचं उस्सग्गं करेयचं, एगदुवयणवजं मोणेण ठाइयवं, पाणिपत्ते भोत्तवं, एगे किर सूरिणो एवं भणंति, तं च किर कहं ?-सपत्तो धम्मो पन्नवेयघोत्ति भगवया पढमपारणगे परपत्तमि भुत्तं, तेण परं पाणिपत्मि जाव छउमत्थोत्ति, गिहत्थो य न अब्भुट्टेयघोत्ति पंचमो, एवं च गहियपंचाभिग्गहो अद्धमासावसाणे तत्तो नीहरित्ता अट्ठियग्गामंमि वच्चइ, तस्स पुण अद्वियगामस्स पढमं वद्धमाणनाममासि, तं च किर कहं ववगयंति ? निसामेह कारणं- कोसंबीए नयरीए असंखदविणसंचओ धणो नाम सेट्ठी परिवसइ, तस्स अणेगोवजाइयसएहिं पसूओ धणदेवो नाम पुत्तो, अचंतं पाणप्पिओ वीसासट्ठाणं च, सो य अन्नया अणेगकुवियप्पदुदृसत्तभीसणं समुलसंतमयणकुसुमसरं रंगततण्हामिगवण्हियापडलं दुबारपसरेंदियचोरभयावहं दुरुत्तारमूढयामहानिन्नगाविसमं अरन्नं व रउइं संपत्तो तारुण्णं, तवसेण य वसइ वेसागिहेसु रमइ जूयं पइदियहं विद्दवइ अत्थसंचयं, कुणइ विविहे विलासे, उवचरेइ दुल्ललियगोडिं, पोसेइ नडनाडइज्जगायणपमुहं अनिवद्धं जणं, नाऽवेक्खइ कुलमेरं न परिचिंतेइ सयणाववायंति, एवं च वञ्चंतेसु य वासरेसु खीणेसु दवपडिपुण्णमहानिहाणेसु, सुन्नीभूएसु कोठागारेसु चिंतियं धणसेट्ठिणा-अहो दुरुत्तारमूढयामतभीसणं समुल्लसंत ॥१४८॥ वेसागिहेसु रमा For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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