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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वधोद्यतचौरघात जंबूखंडे नन्दिषेणा: कूपिकासंनिवेशे ग्रह श्रीगुणचंद | संठिया, पच्छा आरक्खियपुत्तेण इओ तओ परिभमंतेण चोरोत्ति कलिऊण महल्लभल्लएण आहया, तवेलं चिय महावीरच० समुप्पण्णोहिनाणा मरिउं दिवमुवगया, अहासन्निहियदेवनिवहेहि य तेसिं महिमं कीरमाणिं पासित्ता तं पएस ६प्रस्तावः गओ गोसालो, दिट्ठा य कालगया थेरा, तओ सुहपसुत्ता पडिस्सए गंतूण पडिवोहिया तेर्सि सिस्सा, निब्भच्छि४|ऊण साहिओ थेरमरणवइयरो, गओ य सट्ठाणं, जयगुरूवि कुवियसन्निवेसमेइ, तत्थवि चारियत्तिकाऊण गहिओ दंडवासिएहि, बंधणताडणपमुह कयत्थणाहिं पीडिउमारद्धो य।। अह जिणनाहे तेहिं वहिजमाणे जणे समुलावो। जाओ जह देवजो अप्पडिमो रूवलच्छीए ॥१॥ कह चारिओत्ति गहिओ किं सोऽवि करेज एरिसं कम्मं । अहवा विचित्तरूवा कम्मगई किं न संभवइ ? ॥२॥ तहविहु इमं सुणिजइ जत्थागिति तत्थ निवसइ गुणोहो। ता नूण मूढयाए एए एयं कयत्थंति ॥३॥ भोगोवभोगहेउं साहूवि विरूवमत्थमायरइ । जो वत्थंपि न वंछइ स चारियत्तं कहं काही? ॥४॥ इय लोयपवायं निसुणिऊण विजया तहा पगम्भा य । पासजिणसिस्सिणीओ तकालविमुक्कदिक्खाओ॥५॥ निबाहत्थं परिवाइयाए वेसं समुन्वहंतीओ। मा वीरजिणो होहित्ति संसएणाउलमणाउ ॥ ६॥ गच्छंति तहिं दद्रूण जिणवरं आयरेण वंदति । पच्छाऽऽरक्खिगपुरिसे तज्जति सुनिङ्करगिराए ॥७॥ रे रे किं न हयासा! सिद्धत्थनरिंदनंदणं एयं । धम्मवरचक्कवादि मुंचह ? सिग्धं च खामेह ॥८॥ MARACANCE CACASEASADALACE ॥१९६॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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