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________________ www.kobatrth.org Acharya Sivi Kailassagarsur Gyarmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra राया, खुमिया य सहा, कहं ? अणवरयविणिंतुद्दामसेयबिंदुभडं मुहं सुहडो। परिमुसइ कोऽवि कोवुग्गमेण अहियं दुरालोयं ॥ १॥ नवकुवलयमालाविभमंमि निम्मलपहमि करवाले । निवडइ य भमररिंछोलिसच्छहा कस्सविय दिट्ठी ॥२॥ परपक्खक्खोभकरि कोवसिहाडंवरेण भयजणाण । पचक्खं नियसत्तिं व कोऽवि सतिं करे धरइ ॥ ३॥ कस्सवि निडालबद्धं रेहुक्कडभिउडिभंगदुप्पेच्छं । खयसमयसमुग्गयराहुमंडलं सहइ गयणं व ॥४॥ केणावि कुलिसनिहुरमुट्ठिपहारेण ताडिया धरणी। अविणीयधारणेणं कयावराहत्व कंपेइ ॥५॥ संभावियरणरसनिस्सरंतरोमंचपीवरकरस्स । चिरपरिहियाई कस्सवि विहडंति य कणयकडयाई ॥ ६ ॥ कोऽविहु मच्छरसंभारतरलियं वयणभासणसयण्डं । कटेण दसणदट्ठोटसंपुडेणं खलइ जीहं ॥७॥ इय जाया कोवभरुलसंतदेहाण विविहकिरियाओ। संगामसंगमुक्कंठियाण सुहडाण तवेलं ॥८॥ एत्थंतरे भणियं आसग्गीवेण-अरे उपेक्खियाणं दुरायाराणं एस चिय गई, को तस्स दोसो ?, अन्नहानियधूयापरिणयणावराहकालेऽवि जइ तमहं निगिण्हंतो ता किं एवं पसरं लहंतो, तहा-जो नियधूयं कामेइ सो नियसामिपि दुहइ किमजुत्तं ? । किं वा एएण?, इयाणिपि विणिवाएमि एवं महापावकारिणं, तारे ताडेह पत्थाणविजयढकं, पगुणीकरावेह कुंजरसाहणं, संजत्तावेह तुरयपहाई, जोत्तावेह संदणगणं, वाहरावेह समग्गं For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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