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ॐ सिद्ध भगवान् ॐ
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नरक की भूमि के कारण होने वाली वेदनाएँ और (३) नारकी जीवों द्वारा आपस में एक दूसरे को पहुंचाई जाने वाली वेदनाएँ।
परमाधामी देव तीसरे नरक तक ही जाते हैं, आगे नहीं। अतएव आगे के चार नरकों में दो ही प्रकार की वेदनाएँ होती हैं; किन्तु वेदनाओं की तीव्रता आगे-आगे बढ़ती ही जाती है। पहले नरक से अधिक दूसरे में, दूसरे से अधिक तीसरे में, तीसरे से अधिक चौथे में, इस प्रकार सातवें नरक में सबसे अधिक वेदना होती है। इन सब वेदनाओं का वर्णन आगे किया जाता है।
परमाधामी-देवकृत वेदनाएँ
परमाधामी देव असुरकुमार देवों की एक जाति है। वह पन्द्रह प्रकार के होते हैं । दूसरों को दुःख देना और दुःखी देखकर प्रसन्न होना तथा आपस में लड़ाना-भिड़ाना और लड़ाई देखकर आनन्द अनुभव करना इनका स्वभाव है । यह परमाधामी देव नारकी जीवों को इस प्रकार कष्ट पहुँचाते हैं। :
(१) अम्ब-नारकी जीवों को आकाश में ले जाकर एक दम नीचे पटक देते हैं।
(२) अम्बरीष-नारकी जीवों को छुरी वगैरह से छोटे-छोटे टुकड़े करके भाड़ में पकने के योग्य बनाते हैं ।
(३) श्याम-रस्सी या लात-घूसे वगैरह से नारकी जीवों को मारते हैं तथा भयंकर कष्टकारी स्थानों में ले जाकर पटक देते हैं। जैसे सिपाही चोर को मारता है उसी प्रकार यह परमाधामी नारकियों को बुरी तरह पीटते हैं।
(४) शबल-जैसे सिंह, बिल्ली या कुत्ता अपने भक्ष्य को पकड़ कर उसे चीर-फाड़ कर मांस निकालता है, उसी प्रकार यह परमाधामी देव नारकी के शरीर को चीर-फाड़ कर मांस जैसे पुद्गल को बाहर निकालते हैं।