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* जैन-तत्त्व प्रकाश *
[१४] ग्रंथाख्य-अध्ययन-इसमें एकलविहारी साधु के दोष बतलाकर उसे हितशिक्षा दी गई है।
[१५] आदानीयाख्य-अध्ययन में श्रद्धा, दया, वीरता, दृढ़ता आदि मोक्ष के साधनों का वर्णन है।
[१६] गाथा-अध्ययन--इसमें श्रमण, माहन आदि का सच्चा स्वरूप बतलाया गया है।
श्रीसूत्रकृतांगसूत्र के द्वितीय श्रुतस्कंध में सात अध्ययन हैं। उनका संक्षिप्त दिग्दर्शन इस प्रकार है:
[१] पुडरीकाध्ययन-इसमें पुण्डरीक कमल का दृष्टान्त देकर चारों वादियों का स्वरूप समझाया गया है और पाँचवें मध्यस्थ ने उद्धार किया, यह वर्णन है।
[२] क्रियास्थान-अध्ययन-इसमें १३ क्रियाओं का वर्णन है ।
[३] आहारप्रज्ञा-अध्ययन-इसमें जीवों के आहार ग्रहण करने की रीति का और उनकी उत्पत्ति का वर्णन है ।
[४] प्रत्याख्यान-अध्ययन में दुष्प्रत्याख्यान और सुप्रत्याख्यान का स्वरूप है और यह बतलाया गया है कि अविरति से दुःख होता है।
[५] अनाचारश्रुत अध्ययन में अनाचार के दोषों का वर्णन तथा शून्यवादी के मत का खण्डन है।
[६] आर्द्रकुमार-अध्ययन-मुनि आर्द्रकुमार ने अन्य मतावलम्बियों के साथ जो धर्मचर्चा की थी, उसका विवरण है।
[७] उदक पेढालपुत्र-नामक अध्ययन में गौतम स्वामी के साथ उदक पेढालपुत्र ने जो चर्चा की थी, उसका वर्णन है।
सूत्रकृतांगसूत्र के पहले ३६००० पद थे, अब २१०० श्लोक हैं।