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ज्ञान की प्रौढ़ता को प्राप्त होकर अनेक ज्ञानियों- ध्यानियों से परिवृत होकर वितण्डावादियों को हटाते हुए शोभा पाते हैं ।
* उपाध्याय *
(५) जैसे अनेक गायों के समूह से युक्त और दोनों तीखे सींगों वाला धौरेय बैल शोभा पाता है, उसी प्रकार उपाध्यायजी निश्चयनय और व्यवहारनय रूप दोनों तीखे सींगों युक्त और मुनियों के वृन्द से युक्त शोभायमान होते हैं।
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(६) जैसे तीक्ष्ण दाड़ों वाला केसरी सिंह वनचरों को क्षुब्ध करता शोभा पाता है, उसी प्रकार उपाध्यायजी सात नय रूप तीखी दाढ़ों से परवादियों को पराजित करते हुए शोभित होते हैं ।
(७) जैसे तीन खण्ड के अधिपति वासुदेव सात रत्नों से सुशोभित होते हैं, उसी प्रकार ज्ञानादि रत्नत्रय के नायक तथा सात नय रूपी सात रत्नों के धारक और कर्म-शत्रुओं का पराजय करने वाले उपाध्यायजी सुशोभित होते हैं ।
(८) जैसे छह खण्डों के अधिपति और चौदह रत्नों के धारक चक्र - वर्त्ती शोभा पाते हैं उसी प्रकार षट् द्रव्य के ज्ञाता तथा चौदह पूर्व रूप चौदह रत्नों के धारक उपाध्यायजी शोभा पाते हैं ।
(६) जैसे एक सहस्र नेत्रों का धारक और असंख्य देवों का अधिउसी प्रकार सहस्रों तर्क-वितर्क धारक असंख्य भव्य प्राणियों के
पति शक्रेन्द्र वज्रायुध से शोभा पाता है, वाले तथा अनेकान्त स्याद्वाद रूप वज्र के अधिपति उपाध्यायजी शोभित होते हैं ।
(१०) जैसे सहस्र किरणों से जाज्वल्यमान, अप्रतिम प्रभा से अंधकार httष्ट करने वाला सूर्य गगनमण्डल में शोभा पाता है, उसी प्रकार निर्मल ज्ञान रूपी किरणों से मिथ्यात्व और अज्ञान अन्धकार को नष्ट करने वाले उपाध्यायजी जैन संघ रूप गगन में सुशोभित होते हैं ।
* कार्तिक शेठ १००८ गुमास्ते के साथ दीक्षा ले करणी कर श्रायुष्य पूर्ण कर प्रथम देव लोक में शकेन्द्रजी हुये और ५०० गुमास्ते सामानिक देव हुये थे, वे देवदैव शक इन्द्रजी के साथ रहने से उनकी आँखें मिला कर सहस्र नेत्री इन्द्र कहलाते हैं ।