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ॐ धर्म प्राप्ति
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अपकाय (पानी)—इसकी सात लाख जातियाँ हैं । सात लाख करोड़ कुल हैं। इसकी उत्कृष्ट आयु सात हजार वर्ष की है।
(३) तेउकाय (अग्नि)—की सात लाख जातियाँ हैं और तीस लाख करोड़ कुल हैं । इनकी उत्कृष्ट आयु तीन अहोरात्रि की।
(४) वायुकाय—की सात लाख जातियाँ हैं और सात लाख करोड़ कुल हैं। उत्कृष्ट आयु तीन हजार वर्ष की है । इन चार स्थावर कायों में अपने आत्मा ने असंख्यात काल ब्यतीत किया है। ____ (५) बनस्पतिकाय-की चौवीस लाख * जातियाँ हैं। अठाईस करोड़ कुल हैं। उत्कृष्ट आयु दस हजार वर्ष की है । इसमें निगोद के आश्रित अनन्त काल ब्यतीत किया है। अनन्त पुण्य की वृद्धि होने पर एकेन्द्रिय अवस्था त्याग कर द्वीन्द्रिय अवस्था प्राप्त की।
(६) द्वीन्द्रियादि त्रस-काय-इनमें द्वीन्द्रिय जीवों की दो लाख जातियाँ हैं सात करोड कुल हैं उत्कृष्ट आयु बारह वर्ष की है। फिर अनन्त पुण्य की वृद्धि होने पर बड़ी कठिनाई से त्रीन्द्रिय पर्याय की प्राप्ति हुई। इसकी दो लाख जातियाँ हैं, आठ लाख करोड़ कुल हैं और ४६ दिन की उत्कृष्ट आयु है । वहाँ से अनन्त पुण्य की वृद्धि होने पर चौ-इन्द्रिय पर्याय पाई। इसकी दो लाख जातियाँ हैं, नौ लाख करोड़ कुल हैं और छह महीने की आयु है। यह द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चौहन्द्रिय जीव विकलत्रय कहलाते हैं। इन्हें विकलेन्द्रिय भी कहते हैं । इन तीन विकलेन्द्रिय जीवों में जन्म-मरण करके संख्यात काल व्यतीत किया है ।।
x विकलेन्द्रिय जीवों की नाना पर्यायों में परिभ्रमण करते-करते अनन्त पुण्य की वृद्धि होने पर असंज्ञी तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय अवस्था प्राप्त हुई। इस तरह तीन प्रकार के भ्रमर गिने जाते हैं। ऐसे ही सब के कुल भी भिन्न-मित्र है । पितृपक्ष को कुल कहते हैं। कुलों की संख्या एक करोड़ साढे सत्तानवे लाख करोड़ है। यह संख्या पनवणसूत्र में कही है । तत्त्व केवलीगम्य ।
* वनस्पतिकाय की चौबीस लाख योनियाँ (जातियाँ ) हैं । इनमें दस लाख प्रत्येक वनस्पति की और चौदह लाख साधारण वनस्पति की हैं।
xविगोद से लेकर असंज्ञी तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय तक की अवस्थाओं में जीव पराधीन रहकर भूख, प्यास, शीत, उष्ण, छेदन, भेदन आदि की विविध वेदनाएँ सहन करता रहा।