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* सागारधर्म - श्रावकाचार *
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(३) इसी प्रकार वेश्या के विषय में सोच कर गमन करने वाले को अनाचार का पातक लगता है ।
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चाहे कोई कुंवारी हो, विधवा हो या वेश्या हो, जिसके साथ विवाहनहीं हुआ है, वह सब परस्त्री हैं । उत्तम पुरुष उनका सेवन कदापि नहीं करते | सेवन करना लोकविरुद्ध भी है और लोकोत्तरविरुद्ध भी है । इस भव में और परभव में दोनों भवों में दुःखप्रद है । इसके अतिरिक्त वेश्या तो जगत् की जूँठन है । स्वार्थ की सभी है । स्वार्थ के वश होकर वह अंधे, लूले. लँगड़े, कोढी, चाण्डाल आदि सभी को अपना प्यारा बना कर सब के साथ गमन करती है और जब स्वार्थ नहीं सकता तो उसी को धक्के दिलवा-कर निकाल देती है । वेश्यागामी पुरुषों में घोर निर्लज्जता श्री जाती है । वे सर्वथा विवेकहीन हो जाते हैं और माता, बहिन या पुत्री के साथ गमनकरने का घोरातिघोर पातक भी कर डालते हैं। क्योंकि वेश्या के घर पर ऐसा कोई साइनबोर्ड लगा नहीं होता कि अमुक साहब यहाँ तशरीफ लाया करते हैं । अतः जिस वेश्या के पास बाप जाता है उसके पास बेटा भी चला जाता है । ऐसी दशा में उसे मातृगामी कह देने में क्या अनौचित्य है. ९. और बाप के सम्बन्ध से उत्पन्न हुई वेश्या की लड़की के साथ गमन करने... वाला afraiगामी कहा जाय तो क्या हानि है ? और अपने ही सम्बन्ध से. उत्पन्न हुई वेश्या की पुत्री के साथ भोग भोगने में वेश्यागामी पुरुष संकोच नहीं करता । ऐसी दशा में वेश्यागामी को अगर पुत्रीगामी भी कहा जाय तो क्या अनुचित है ? श्रह ! जिस विशेषण को गाली के रूप में सुन कर - लोग क्रोध से पागल हो उठते हैं, उसी विशेषण को स्वेच्छापूर्वक स्वीकार करने वाले वेश्यागामी पुरुष के अधःपतन की कोई सीमा है ! इससे अधिक घृणास्पद और खेदजनक स्थिति और क्या हो सकती है ! वेश्यागमन के परिणाम स्वरूप ऐसे घोर अनर्थ और जन्म होते हैं ।
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वेश्यागामी को प्रत्येक व्यक्ति घृणा की दृष्टि से देखता है । उसके प्रति किसी की सद्भावना और सहानुभूति नहीं होती । वेश्यागामी पुरुष गर्मी, सुजाक और प्रमेह आदि भयानक बीमारियों का शिकार हो जाता है।