Book Title: Jain Tattva Prakash
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Amol Jain Gyanalaya

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Page 866
________________ ८२०] ® जैन-तत्त्व प्रकाश ® आहार का त्याग करने के पश्चात् निम्नलिखित पाठ का उच्चारण करके शरीर का भी प्रत्याख्यान कर देः जंपि इमं सरीरं-यह जो मेरा शरीर इटुं-इष्ट रहा कंतं-सती को पति के समान वल्लभ रहा है पियं-प्यारा मणुएणं-मनोज्ञ मणाम-मनोरम धिज्ज-धैर्यदाता विसासियं-विश्वसनीय सम्मयं-माननीय बहुमयं-लोभी को धन के समान बहुत माननीय अणुमयं-अनुमत-दुर्गुणी समझ कर भी भला माना भंडकरंडगसमाणं-जिसे आभूषणों की पेटी की तरह हिफाजत से रक्खा रयणकरंडगभूयं-रत्नों के पिटारे के समान माना, (और जिसके विषय में यह सावधानी रक्खी कि-) मा णं सीया-इसे सर्दी न लग जाय मा णं उपहा-गर्मी न लग जाय मा णं खुहा-भूख का कष्ट न हो मा णं पिवासा-प्यास का कष्ट न हो मा णं वाला-साँप (आदि विषैला कीड़ा) न काट खाय मा शं चोरा-चोर (आदि) कष्ट न पहुँचावें मा णं दंसमसंगा-डाँस-मच्छर न काटें

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