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® जैन-तत्त्व प्रकाश
अप्पडिहयवरणाणदसणधराणं--अनितहत ज्ञान-दर्शन के धारक वियदृछउमाणं-छद्म (कपाय) से सर्वथा निवृत्त जिणाणं- राग द्वेष आदि शत्रुओं को स्वयं जीतने वाले जावयाणं-दूसरों को जिताने वाले तिएणाणं-स्वयं संसार सागर से तिरे हुए तारयाणं-दूसरों को तिराने वाले बुद्धाणं-स्वयं तत्व के ज्ञाता बोहयाणं-दूसरों को तत्वज्ञान देने वाले मुत्ताणं-स्वयं कर्मों से छूटे हुए मोयगाणं-दूसरों को कर्मों से छुटाने वाले सव्वन्नृणं--सर्वज्ञ सव्वदरिसीणं-सर्वदर्शी, तथा सिवमयलमरुनं-उपद्रवरहित, अचल और रोगहीन अणंतमक्खयं-अनन्त और अक्षय अव्वाबाहमपुणरावित्ति-बाधा रहित तथा पुनर्जन्म से रहित सिद्धिगइनामधेयं ठाणं--सिद्धिगति नामक स्थान को संपत्ताणं--प्राप्त हुए नमो जिणाणं--जिन भगवान को नमस्कार हो।
यह 'नमुत्थुणं' सिद्ध भगवान् के लिए कहा । इसी प्रकार दूसरी बार अरिहन्त भगवान् के लिए कहना चाहिए । अन्तर यह है कि 'ठाणं संपचाणं' की जगह 'ठाणं संपाविउकामाणं' ऐसा बोलना चाहिए । इसका अर्थ है-सिद्धि स्थान को प्राप्त होने वाले हो।' फिर 'नमुत्थुणं मम धम्मगुरु. धम्मायरिय धम्मोवदेसगस्स जाव संपाविउकामस्स' अर्थात् मेरे धर्मगुरु, धर्माचार्य और धर्मोपदेशक .यावद मोक्ष प्राप्त करने के अभिलाषी आचार्य महाराज को नमस्कार हो।