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अन्तिम मंगल
(सूत्र) एय णं धम्मे पेच्चभवे य इहभवे य हियाए, सुहाए, खेमाए, णिस्सेयसाए, अणुगामियत्ताए भविस्सइ ।
अर्थात्-इस जीव के लिए यही धर्म परभव में तथा इस भव में सुखकारी, कल्याणकारी, श्रेयस्कर और साथ देने वाला होगा। इसी से तेरा निस्तार होगा। तथास्तु ।
विज्ञप्ति
सुज्ञ पाठकगण ! श्री जिनवरेन्द्र भगवान् द्वारा प्रकाशित और श्री गणधर महाराज द्वारा ग्रथित सूत्रों और प्राचार्यों द्वारा रचित ग्रन्थों के अनुसार तथा निज मत्यनुसार इस 'जैनतत्त्वप्रकाश' ग्रन्थ की रचना करने का जो श्रम किया है सो केवल मेरा दानधर्म का कर्तव्य बजा कर भव्यात्माओं को लाभ पहुंचाने के लिए उपकारक दृष्टि से ही साहस किया है, न कि मेरी विद्वत्ता बताने । क्योंकि मैं नहीं समझता हूँ कि मैं विद्वान् हूँ। इसलिए मेरे आशय पर लक्ष्य स्थापन कर, इस ग्रन्थ में मेरी छमस्थता से जो कोई दोष रह गया हो उसे बाजू पर रख कर उसकी क्षमा कीजिए और इसमें कथित सद्बोध व सद्गुणों के गुणानुरागी बनं गुण ही गुण को ग्रहण कीजिए । यही मेरी नम्र विज्ञप्ति है जी।
हितेच्छु - अमोलक ऋषि