Book Title: Jain Tattva Prakash
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Amol Jain Gyanalaya

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Page 863
________________ * अन्तिम शुद्धि सयं संबुद्धाणं - स्वयं ही बोध को प्राप्त पुरिसुत माणं - पुरुषों में उत्तम पुरिससीहाणं -- पुरुषों में सिंह के समान पुरिसवर पुंडरीया - पुरुषों में प्रधान पुण्डरीक कमल के समान पुरिसवरगंधहत्थीणं - पुरुषों में गंधहस्ती के समान लोगुत्तमाणं - लोक में उत्तम लोगनाहाणं - लोक के नाथ लोगहिया - लोक के हितकर्त्ता लोगपईवाणं - लोक में दीपक के समान प्रकाश करने वाले लोगपज्जोय गराणं - लोक में उद्योत करने वाले अभयदयाणं - अभयदान के दाता चक्खुदयाणं - ज्ञान रूप चक्षु देने वाले मग्गदयाणं - मोक्ष मार्ग के दाता सरणदयाणं - शरणदाता जीवदया - जीवन दान देने वाले बोधिदया - बोधि बीज - सम्यक्त्व के दाता धम्मदया - धर्म के दाता धम्मदेसया – धर्म का उपदेश करने वाले धम्मनायगाणं -- धर्म के नायक धम्मसारहीणं - धर्म रूपी रथ के सारथी [ ८१७ धम्मवरचा उरंतचक्कवट्टी - धर्म के चारों दिशाओं का शासन करने वाले चक्रवर्त्ती के समान । दीव ताणं सर-इ-पट्ठाणं - द्वीप के समान, शरणभूत, गति और प्रतिष्ठा रूप

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