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* सागारधर्म-श्रावकाचार
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सच्चे श्रावक के लक्षण
(आर्या छन्द) कयवयकम्मो तह सीलवं च गुणणं च उज्जुववहारी । गुरुसुस्सून पवयणकुसलो खलु भगवओ सद्धो ॥
अर्थात् -सम्यक्त्व तथा व्रत आदि श्रावक के कर्मों का सम्यक प्रकार से समाचरण करने वाला, शीलवान्, गुणवान्, सरल व्यवहार करने वाला गुरुजनों की सेवा-भक्ति करने वाला, जिनेन्द्र के प्रवचन में कुशल जिन भगवान् का श्राद्ध (श्रावक) होता है।
(गाथा ) अगारी सामाइयंगाणि, सड्ढी कारण फासए । पोसहं दुहरो पक्खं, एगरायं न हावए ॥२३॥ एवं सिक्खासमावन्ने गिहिवासे वि सुव्वए। मुच्चइ छविपव्वामओ, गच्छे जक्खसलोगयं ॥२७॥
-श्री उत्तराध्ययन। अर्थात्-श्रद्धावान् गृहस्थ को सामायिक आदि व्रतों का पालन करना चाहिए । कृष्णपक्ष में और शुक्लपक्ष में पौषधव्रत का आचरण करना चाहिए। एक रात्रि भी विना धर्मक्रिया के नहीं गवानी चाहिएं अर्थात् प्रतिदिन आवश्यक दैनिक धर्मकृत्य अवश्य करना चाहिए। इस प्रकार की शिक्षा से युक्त श्रावक गृहवास करता हुआ भी सुव्रती कहलाता है। वह मल, मूत्र, रक्त, मांस आदि के पिण्ड इस औदारिक शरीर को त्याग कर यक्ष लोक को प्राप्त होता है अर्थात् देवगति पाकर इच्छानुसार रूप बना लेने वाला वैक्रियशरीर का धारक देव होता है । इसके पश्चात् वह थोड़े ही भवों में जन्म जरा, मरण के तथा प्राधि, व्याधि, उपाधि के समस्त दुःखों का अन्त करके मुक्ति के अनन्त अक्षय अव्यावाध सुख का अधिकारी बनेगा।