Book Title: Jain Tattva Prakash
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Amol Jain Gyanalaya

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Page 858
________________ ८१२ ] ® जैन-तत्त्व प्रकाश यावज्जीवन के लिए यथायोग्य प्रत्याख्यान कर लेना चाहिए। ऐसे प्रत्याख्यान को सागारी संथारा* कहते हैं । वह इस प्रकार किया जाता है: शयन करने से पहले पूर्वोक्त आवस्सही इच्छाकारेण की पाटी और तस्सुत्तरी की पाटी कह कर चार लोगस्स का कायोत्सर्ग करे । एक लोगस्स प्रकट में कह कर दोनों हाथ जोड़ कर कहे भक्खंति, उज्झति, मारंति किवि उवसग्गेणं मम आउ-अन्तो भवेज तहा सरीर-सम्बन्ध-मोह-ममत्त-अट्ठारसपावट्ठाणाणि चउव्विहं पि आहार बोसिरामि, सुहसमाहिएणं निद्दावइक्कती तो आगारो। अर्थात्-सोते समय कदाचित् सिंह आदि खा जाय, आग लगने से शरीर जल जाय, पानी में बह जाऊँ, शत्रु आदि मार डाले या आयु पूर्ण होने से मर जाऊँ या किसी अन्य उपसर्ग से मेरी आयु का अन्त हो जाय तो मैं अपने शरीर की मोह-ममता का, अठारह पापस्थानों का और चारों प्रकार के श्राहारों का त्याग करता हूँ। अगर सुख-समाधि के साथ जागृत होऊँ तो मैं सब प्रकार से खुला हूँ। इस प्रकार संकल्प करके नमस्कार मन्त्र का स्मरण करता हुआ शयन करे । जागने पर पूर्वोक्त प्रकार से चार लोगस्स का कायोत्सर्ग करके निम्नलिखित पाठ का उच्चारण करे: 'पडिक्कर्मामि निगामसिज्जाए संथारा उत्तहणाय, परियहणाय, आउदृणपसारणाय, छप्पइसंघट्टनाय, कुइए, कपकाराए, छीए, भाइए, आमोसे, कुण्डलिया छन्द * मरदों माथे मनुष्य ने मरवानो तो छेज, पण परमार्थ करणे मरणों मुश्किलं एज । मरणो मुश्किल एज सकल संसार संभारे, वाह वाह कहि सह विश्व अहोनिशि कीर्ति उच्चारे । दाखे दलपतराम वचनना पालो विरदो,

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