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अन्तिम शुद्धि
मृत्युमार्गे प्रवृत्तस्य, वीतरागो ददातु मे । समाधियोधपाथेयं, यावन्मुक्तिपुरी पुरः॥
-मृत्युमहोत्सव जिस प्रकार विदेश जाते समय घर के प्रेमी जन जाने वाले के साथ मार्ग में खाने पीने की सामग्री रख देते हैं, जिससे कि मार्ग में जाने वाले को किसी प्रकार का कष्ट न हो, उसी प्रकार, हे वीतराम देव ! हे धर्मपितामह ! मैं मृत्यु-मार्ग पर अग्रसर हो रहा हूँ । मुझे मुक्ति रूपी नगरी में पहुँचना है । मुक्ति-पुरी तक सकुशल पहुँचने के लिए मुझे समाधि का बोध अथवा चित्त की समाधि और सद्वोध प्रदान कीजिए, जिससे मेरी यात्रा सानन्द पूणे हो।
मृत्यु के १७ प्रकार
(१) अविचियमृत्यु (अनुवीचि मरण)-उत्पन्न होने के बाद उदय में माये हुए आयुकर्म के दलिकों का प्रतिसमय निर्जीर्ण होना । अर्थात् समयसमय पर आयु का कम होते जाना।
(२) तद्भवमरण-वर्तमान भव में जो शरीर प्राप्त हुआ है, उससे संबंध फूट जाना।