Book Title: Jain Tattva Prakash
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Amol Jain Gyanalaya

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Page 853
________________ * अन्तिम शुद्धि * [८०७ (३) अवधिमृत्यु-एक बार भोगकर छोड़े हुए परमाणुओं को दुबारा भोगने से पहले पहले जब तक जीव उनका भोगना शुरु नहीं करता तब तक अवधिमरण कहलाता है। (४) आद्यन्तमरण-सर्व से और देश से आयु क्षीण होना तथा दोनों भवों में एक सी मृत्यु होना। (५) बालमरण-विष, शस्त्र, अग्नि या पानी से अथवा पहाड़ से नीचे गिर कर आत्मघात करके मरना तथा ज्ञान-दर्शन-चारित्र की आराधना न करके अज्ञानपूर्वक हाय हाय करते हुए मरना । (६) पण्डितमरण-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र सहित समाधिपूर्वक आयु पूर्ण होना । (७) वलन्मृत्यु-संयम एवं व्रत से भ्रष्ट होकर मरना । (E) बालपण्डितमरण-सम्यक्त्वयुक्त श्रावक के व्रतों का आचरण करके समाधिभाव के साथ शरीर का त्याग करना । (६) सशल्यमरण-मायाशल्य, निदानशल्य और मिथ्यात्वशल्य में से किसी भी शल्य के साथ मरना ।। (१०) प्रमादमृत्यु-प्रमाद के वश होकर तथा घोर संकल्प-विकल्पमय परिणामों के साथ प्राणों का परित्याग करना । (११) वशालमृत्यु--इन्द्रियों के वश होकर, कषाय के वश होकर, वेदना के वश होकर या हास्य के वश होकर मृत्यु होना । (१२) विप्रणमत्यु-संयम, शील, व्रत आदि का निर्वाह न होने से घात करना। (१३) गृद्धपृष्ठ मृत्यु-संग्राम में शूरवीरता के साथ प्राण त्यागना । (१४) भक्तप्रत्याख्यान मृत्यु-विधिपूर्वक तीनों प्रकार के प्राहार के स्याग का यावज्जीवन प्रत्याख्यान करके शरीर को स्थागना ।

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