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* सागारधर्म - श्रावकाचार *
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विचार कदापि न आने दे कि दुष्काल पड़ जाय तो अच्छा ! श्रावेक प्राणी मात्र के हित की अभिलाषा करे ।
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(७) द्विपदयथा परिमाण - द्विपद अर्थात् दो पैर वालों का परिमाण करे | दास, दासी, नौकर-चाकर तथा तोता आदि पक्षी द्विपद परिग्रह गिने जाते हैं । जहाँ तक सम्भव हो, श्रावक दास-दासी, नौकर-चाकर न रक्खे, क्योंकि ऐसा करने से प्रमाद की वृद्धि होती है। इसके अतिरिक्त अपने हाथ से काम करने से भी यतना हो सकती है, दूसरे से काम कराने पर उतनी यतना नहीं होती । इतने पर भी यदि नौकर-चाकर रखने ही पड़ें तो जहाँ तक स्वधर्मी का योग मिले, विधर्मी को न रक्खे । इससे स्वधर्मी को सहायता मिलेगी और यतनापूर्वक तथा नमकहलाली से काम होगा । विधर्मी को रखना पड़े तो उसे स्वधर्मी बनाने का प्रयास करे और उसके काम पर पूरी-पूरी देख-रेख रक्खे, जिससे अयतना से काम न होने पावे और धर्मात्मा की संगति के फलस्वरूप वह भी दयालु एवं धर्मात्मा बन जाय ।
इसी प्रकार गाड़ी, रथ आदि वाहन भी आवश्यकता से अधिक नहीं रखना चाहिए | इससे भी प्रमाद और अयतना की वृद्धि होती है । कदाचित् रखने पड़ें तो इस बात की सावधानी रखनी चाहिए कि अधिक से अधिक तना किस प्रकार टाली जा सकती है ?
श्रावक नौकर-चाकरों एवं गाड़ी आदि की मर्यादा करके उससे अधिक रखने का त्याग करे । पक्षियों को रखने का निषेध पहले ही व्रत में किया जा चुका है | श्रावक को ऐसी मर्यादा भी कर लेनी चाहिए कि इतनी सन्तान होने के बाद मैं ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करूँगा ।
(८) चतुष्पद यथापरिमाण – चौपाये पशुओं का इच्छित परिमाण करे । गाय भैंस, घोड़ा, हाथी, ऊँट, गधा, बकरी, कुत्ता आदि पशुओं का आवश्यकता से अधिक संग्रह करना श्रावक के लिए उचित नहीं है, क्योंकि उनके लिए वनस्पति, पानी आदि का अधिक आरम्भ करना पड़ता है । श्रावक जिन पशुओं को रक्खे, उनके सम्बन्ध में सावधान रहकर उन्हें अन्त