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® जैन-तत्व प्रकाश
(८) विलेवणविहं-शरीर पर लेपन करने की अगर, तगर, केसर, अतर, तेल, सैंट आदि वस्तुओं की मर्यादा ।
(8) पुष्फविहं-फूलों * की जाति तथा संख्या की मर्यादा । (१०) आभरणविहं-आभूषणों की संख्या तथा जाति की मर्यादा । (११) धूपविहं---धूप की जाति तथा वजन की मर्यादा । (१२) पेजविहं-शर्बत, चाय, काफी, उकाली आदि पेय की मर्यादा (१३) भक्खणविहं--पकवान और मिठाई की मर्यादा । (१४) श्रोदण विहं-चावल, खिचड़ी थुजी आदि की मर्यादा ।
(१५) भूपविहं-चना, मूंग, मौंठ, उड़द आदि दालों की तथा चौवीस प्रकार के धान्यों की मर्यादा।
(१६) विगयविहं—दूध, दही, घी, तेल, गुड़, शक्कर आदि की मर्यादा ।
(१७) सागविहं-मैंथी, चंदलई आदि भाजी तथा तोरई, ककड़ी, भिंडी आदि अन्य शाकों की मर्यादा ।
(१८) माहुरविहं-बादाम, पिश्ता, चिरौंजी, खारक, दाख, अंगूर श्रादि मेवा की तथा आंवला आदि के मुरब्बे की मर्यादा।
(१६) जीमणविह-भोजन में जितने पदार्थ भोगने में आवें उनकी मर्यादा।
में डाल कर मार डाला जाता है और फिर रेशम उकेल ली जाती हैं। रेशमी वस्त्र पहनने वाला भी इस घोर हिंसा का भागी होता है। अतः श्रावक को ऐसे रेशमी वस्त्र नहीं पहनना चाहिए।
___ * फूल अत्यन्त कोमल होने से अनन्त जीवों वाला होता है। उसमें त्रस जीवों का भी निवास होता है। उसका छेदन-भेदन करने से त्रस जीवों की भी हिंसा होती है। कितनेक लोग देव-देवियों को फल चढ़ाने में धर्म मानते हैं। श्रावक को ऐसा नहीं करना चाहिए।