Book Title: Jain Tattva Prakash
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Amol Jain Gyanalaya

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Page 795
________________ सागारधर्म-श्रावकाचार * [ ७४६ - करना, कूप, बावड़ी, कंड, तालाब, नहर आदि बनवा-बनवाकर बेचना, घट्टी (चक्की), ऊखली, कुंडी, खरल आदि पत्थर के बना-बनाकर बेचना, हल-बखर श्रादि से पृथ्वी सुधारने का धन्धा करना, तथा ऐसे ही विशिष्ट प्रारम्भ के अन्य कार्य करना । ___ (६) दन्तवाणिज्य-हाथी के दांतों* का, उल्लू या व्याघ्र के नाखूनों का, हिरण या व्याघ्र आदि के चमड़े का, चमरी गाय की पूंछ के बालोंx का तथा शंख सीप कौड़ी और कस्तूरी आदि का व्यापार करना । (७) लाक्षावाणिज्य-लाख, चपड़ी, गोंद, मनसिल, धावड़ी के फूल, कुसुंबा हड़ताल, आदि का व्यापार लाक्षावाणिज्य में अन्तर्गत है। (E) रसवाणिज्य-मदिरा आदि रसों का व्यापार करना । (8) विषवाणिज्य-अफीम, वच्छनाग, सोमल, धतूरा श्रादि जहरीली प्राणघातक बस्तुओं का तथा तलवार, खड्ग, वंदूक, तोप आदि शस्त्रों का व्यापार करना । (१०) केशवाणिज्य–पशुओं और पक्षियों का व्यापार करना या मनुष्यों को बेचना आदि। (११) यन्त्रपीडनकर्म तेल निकालने की घानी, ईख आदि पीलने की कोल्हु आदि अथवा इनके पुर्जे बना कर बेचने का धंधा करना । * हाथी पकड़ने वाले खूब गहरा गड़हा खोद कर, उसके ऊपर पतले बांस बिछा देते हैं और कागज की हथिनी खड़ा कर देते हैं। हाथो, हथिनी के आकर्षण से वहाँ जाता है और बांसों के टूटते ही गड्ढे में गिर कर मृत्यु को प्राप्त होता है । उसकी हड़ियों के चूड़े बनते हैं । सुनते हैं फ्रांस देश में प्रति वर्ष सत्तर हजार हाथी मारे जाते हैं। हाथी दांत के व्यापारी और उसकी बनी वस्तुओं का उपयोग करने वाले भी उस पाप के भागी होते हैं। जैन जैसे दयालु समाज में से हाथी-दात के चूड़े पहनने का रिवाज शीघ्र बन्द हो जाना चाहिए। ~ जिन्दी चमरी गाय की 'छ दगा से काट ली जाती है, जिसके चमर बनते हैं और अत्यन्त खेद की बात है कि धर्मस्थानों में भी उनका प्रयोग किया जाता है। छ काटने से कभी-कभी गाय की मौत भी हो जाती हैं।

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