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® सागारधर्म-श्रावकाचार
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रूप विकार-जनक बातें कहने से कहने वाले और सुनने वाले के चित्र में विकार उत्पन्न होता है, अनेक प्रकार की दूषित भावनाएँ उत्पन्न होती हैं, और कुकर्म में प्रवृत्ति होती है । अतएव यह अतिचार कहा गया है।
(२) कुक्कुइए (कौत्कुच्य)-काय से कुचेष्टाएँ करना । जैसे-भौहें मटकाना, आँख टमकाना, होठ बजाना, नासिका मोड़ना, उवासी लेना, मुँह मलकाना, हाथ-पैर की उंगलियाँ बजाना, हाथ-पैर नचाना, इत्यादि विकार पैदा करने वाली अंग-चेष्टाएँ करना । तथा होली के दिनों में नग्न पुतला बिठलाना, नग्न रूप धारण करके अशिष्ट गान नृत्य करना आदि ।
(३) मोहरिए (मौखर्य)-वैरी के समान वचन बोलना । जिस वचन के बोलने से अपने या दूसरे के आत्मिक गुणों का, द्रव्य का या मनुष्य का नुकसान हो, ऐसा वचन बोलना, असम्बद्ध वचन बोलना, वचन की चपलता करना, वाचालता धारण करना, असभ्य गालियाँ देना, रे तू श्रादि तुच्छ वचन बोलना, खराब गायन ख्याल आदि बनाना या गाना, गालियाँ गाना काम-राग उत्पन्न करने वाले तथा द्वेष जगाने वाले वचन बोलना, यह सब मौखर्य नामक अतिचार है। ऐसे वचन बोलने से निन्दा होती है, झगड़े होते हैं और मारपीट आदि अनेक प्रकार के उपद्रव उठ खड़े होते हैं । यह काम असंस्कारी और अज्ञानी जनों के हैं। श्रावक को उनकी देखादेखी नहीं करनी चाहिए।
(४) संजुत्ताहिगरण (संयुक्ताधिकरण)-अर्थात् शस्त्र का संयोग मिलाना जैसे-ऊखल हो तो मूसल और मूसल हो तो ऊखल नया बनवाना, चक्की का एक पाट हो तो दूसरा बनवाना, चाकू, छुरी, तलवार आदि को हत्था या मुंठ लगवाना, धार भोटी हो गई हो तो तीक्ष्ण करवाना, कुन्हाड़ी वरकी हल आदि में डंडा आदि लगवाना, इस प्रकार अपूर्ण उपकरण को पूर्ण करने से वे प्रारंभ की वृद्धि करने वाले बन जाते हैं, कोई दूसरा माँगे तो उन्हें भी देने पड़ते हैं । ऐसा जान कर अपूर्ण शस्त्र को विना प्रयोजन पूर्ण नहीं कराना चाहिए । और आवश्यकता से अधिक शस्त्रों का संग्रह भी नहीं करना चाहिए । जो शस्त्र घर में हों उन्हें इस प्रकार गुप्त रखना चाहिए कि