Book Title: Jain Tattva Prakash
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Amol Jain Gyanalaya

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Page 808
________________ ७६२) ৪ জন-বল নক্ষা ও (तिक्खुत्तो का पाठ) "तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं फरेमि, वंदाग्नि णमसामि सक्कारेमि सम्मामि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामि, मत्थएण वंदामि ।" अर्थ-तीन बार दाहिनी ओर से (प्रारम्भ करके) प्रदक्षिणा करता हूँ, वन्दना करता हूँ, नमस्कार करता हूँ, सत्कार करता हूँ, सन्मान करता हूँ, गुरुदेव ! आप कल्याणरूप हैं, मंगलरूप हैं, देवतारूप हैं, ज्ञानस्वरूप हैं। मैं आपकी उपासना करता हूँ और मस्तक झुका कर वन्दना करता हूँ। तिक्खुत्तो के पाठ से गुरुदेव को वन्दना करके, फिर खड़ा रहकर कहे- 'इच्छाकारेण संदिसह भगवं ! इरियावहियं पडिक्कमामि ?' अर्थात्-भगवन् ! इच्छापूर्वक प्राज्ञा दीजिए (जिससे मैं) ऐपिथिकी क्रिया (गमनागमन) करने अथवा स्वीकृत धर्माचरण में होने वाली पापक्रिया) का प्रतिक्रमण करूँ ? जब गुरु की ओर से प्राज्ञा मिल जाय तो कहना चाहिए-इच्छं । इच्छामि पडिक्कमिउं ।' अर्थात् आपकी आज्ञा प्रमाण है । मैं प्रतिक्रमण करना चाहता हूँ। तत्पश्चात् निम्नलिखित पाठ का उच्चारण करे: इरियावहियाए, विराहणाए, गमणागमणे, पाणक्कमणे, बीयक्कमणे, हरियक्कमणे, श्रोसा उत्तिंग-पणग-दग-मट्टिया-मक्कडासंताणा संकमणे, जो मे जीवा विराहिया-एगिदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चरिंदिया, पंचिंदिया, अभिहया बत्तिया, लेसिया, संघाइया, संघट्टिया, परियाविया, किलामिया, उद्दविया, ठाणाश्रो ठाणं संकामिया, जीवाओ ववरोविया, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं । अर्थात्-गमन-आगमन करते समय किसी प्राणी को दबाकर, सचित्त वीज हरित-वनस्पति को कुचल कर, आकाश से गिरने वाली प्रोस, चींटी के

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