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* जैन-तख प्रकाश
पोरसी के इस प्रत्याख्यान में छह आगार हैं । पहला और दूसरा आगार पूर्ववत् समझ लेना चाहिए। तीसरा-बादल में सूर्य छिप जाने से समय मालूम न पड़े। चौथा- दिशा में भूल पड़ जाने से समय का पता न चले । पाँचवाँ-किसी अधिक उपकार के कार्य को सिद्ध करने के लिए गुरु आज्ञा दें। छठा-रोग आदि के कारण शरीर में असमाधि उत्पन्न हो जाय ।
३-दो पोरसी का प्रत्याख्यान
सूरे उग्गए पुरिमडढं* पच्चक्खामि--- असणं, पाणं, खाइम, साइम, अण्णत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, पच्छन्नकालेणं, दिसामोहेणं, साहुवयणेणं महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरे ।
दो पोरसी के प्रत्याख्यान में सात श्रागार हैं । इनमें से छह पूर्ववत् हैं। एक 'महत्तरागार' अधिक है, जिसका अर्थ है-माता, पिता आदि बड़ों के आग्रह से।
४-एकाशन का प्रत्याख्यान
एगासणं पच्चक्खामि-असणं, पाणं खाइम, साइमं, अपत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं (सागारी आगारेणं), आउट्टणपसारेणं, गुरुअब्भुट्ठाणेणं, (परिट्ठावणियागारेणं), महचरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरे ।
एकाशन के प्रत्याख्यान के आठ आगार हैं। पहले और दूसरे आगार का अर्थ पहले के ही समान समझना चाहिए। तीसरा आगार-गृहस्थ के आगमन से भोजन करते-करते उठना पड़े। चौथा-हाथ-पैर का संकोचन या प्रसारण करना पड़े। पाँचवाँ-गुरुजी का आगमन होने पर उनके सत्कार के लिए
* मध्याह्न काल को दो पोरसी या पुरिमड्ढ़ कहते हैं। * एक स्थान पर बैठ कर एक बार भोजन करना एकाशन कहलाता है।