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* सागारधर्म - श्रावकाचार
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(३) शब्दानुपात - मर्यादा से बाहर के किसी मनुष्य को शब्द उच्चारण करके बुला लेना ।
(४) रूपानुपात - अपना रूप दिखला कर या अंगचेष्टा से किसी को बुला लेना ।
(५) पुद्गल क्षेप - कंकर, काष्ठ, तुम आदि फेंककर बुलाने का संकेत करना ।
इन पाँच प्रकारों से अतिचार लगता है; क्योंकि देश की मर्यादा दो करण तीन योग से की जाती है और उक्त पाँचों कामों में तीनों योगों की प्रवृत्ति होती है।
उक्त पाँच अतिचार केवल देश की मर्यादा संबंधी ही हैं; किन्तु इस व्रत में उपभोग की मर्यादा भी की जाती है और १७ नियम तथा दस प्रत्याख्यान भी इसी व्रत में सम्मिलित हैं । इसलिए इनके पाँच अतिचार इस प्रकार समझने चाहिए - (१) जितने द्रव्य रक्खे हैं उनसे ज्यादा प्राप्त होने पर विशिष्ट स्वाद के लिये दो-तीन को एक साथ मिला कर भोगना । जैसे दूध और शक्कर को मिला कर एक द्रव्य गिनना । * (२) मर्यादा के बाहर की वस्तु के विषय में यह कहना कि अभी इसे रहने दो, प्रत्याख्यान पूर्ण होने के बाद इसे खाऊँगा, पहलूँगा का अमुक काम करूँगा । (३) प्रत्याख्यान की हुई वस्तु को स्वीकार करने के लिए उसकी प्रशंसा करना । (४) प्रत्याख्यान की हुई वस्तु को ग्रहण करने के लिए उसकी आकृति, चित्र बनाकर बतलाना या लिखकर अपने लिए रहने देने की सूचना करना । (५) सक्ति के साथ मर्यादित वस्तु का सेवन करना । इन पाँचों अतिचारों से आत्मा को बचाना चाहिए ।
छ स्वाद के लिए जो द्रव्य आपस में मिलाये जाते हैं, वे अलग-अलग गिने जाते हैं, किन्तु स्वादहीन बनाने के लिए दाल और दूध जैसी वस्तु मिलाकर खावे तो उसे एक ही द्रव्य गिन लेने में हर्ज नहीं, ऐसा वृद्धों का कथन है ।