Book Title: Jain Tattva Prakash
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Amol Jain Gyanalaya

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Page 844
________________ ७६८] * जैन-तत्व प्रकाश* श्री ठाणांगसूत्र में दस प्रकार के दान कहे गये हैं, किन्तु धर्मदान उन सब में श्रेष्ठ है। धर्मदान से संसार परीत होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस प्रकार बारहवें व्रत के अतिचारों के सेवन से दुःख की उत्पत्ति होती जान कर विवेकशील पुरुषों को उनसे बचना चाहिए और यथोचित सुपात्रदान का लाभ प्राप्त करना चाहिए । जो ऐसा करते हैं वे इस लोक में भी यश एवं सुख-सम्पत्ति के भोक्ता बनते हैं तथा देवादिकों के पूजनीय भी होते हैं । कदाचित् उत्कृष्ट रसायन पक जाय तो तीर्थङ्कर गोत्र का उपार्जन करके तीसरे भव में तीर्थंकर भगवान् होकर सम्पूर्ण जगत् के पूजनीय हो जायंगे और मोक्ष प्राप्त कर लेंगे। कोई-कोई दानदाता भोगभूमि में उत्पन्न होते हैं, कोई स्वर्गीय सुखों के भोक्ता देव बन जाते हैं। इस तरह सुखमय देवभव या मनुष्यभव करके सुबाहुकुमार आदि की तरह थोड़े ही भवों में मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं। अर्थात्-जिन शास्त्रोक्त लिंग के धारक, संयम और व्रत के द्वारा पाप-कर्म का घात करने वाले श्रमण या श्रावक की कोई निन्दा करेगा, गर्दी करेगा, अपमान करेगा, अमनोज्ञ एवं अप्रीतिकारक आहार-पानी-खाद्य-स्वाद्य उन्हें देगा तो वह लम्बा श्रायु तो पाएगा किन्तु दुःखों से पीडित होकर अपना जीवन व्यतीत करेगा। x अणुकंपा संगहे २ चेव, ३भयकालुणिए४ ति य । लेन्जाए५ गारवेणं ६ च, अहम्मे७ पुण सत्तमें || धम्मे८ च अट्टमे वुत्ते काहीतीतह कयंतिए१०।। -ठाणांगसूत्र, ठा० १०, उ०३ अर्थात्-(१) अनुकम्पादान-दुखी जीवों को दुःख से मुक्त करने के लिए दिया जाने वाला दान (२) संग्रहदान-संकटग्रस्त को सहायता देना । (३) भयदान-डर के कारण दिया जाने वाला दान (४) लगदान -कमा (शोक) के कारण दिया जाने वाला दान (५) लज्जादान-लज्जा के कारण दिया जाने वाला दान (६) गौरवदान-कीर्तिबड़प्पन के लिए दिया जाने वाला दान (७) अधर्मदान-पाप सेवन करने वालों को पाप सेवन के लिए दिया जाने वाला दान (८) धर्मदान-धर्म के लिए दान देना धर्मदान है (8) करिष्यतिदान-भविष्य में प्रत्युपकार की आशा से दिया जाने वाला दान (१०) कृतदानकिये हुए उपकार के बदले दिया जाने वाला दान।

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