________________
* सागारधमे-श्रावकाचार *
बिल, पंचरंगी काई, सचित्त जल, सचित्त मिट्टी और मकड़ी के बालों को मसल कर, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चौइन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीव की विराधना की हो, सामने आते हुओं को रोका हो, धूल आदि से ढंका हो, जमीन पर या आपस में रगड़ा हो, एकत्र करके उनका ढेर किया हो, क्लेशजनक रूप से छुआ हो, परितापना दी हो, थकाया हो, हैरान किया हो, एक जगह से दूसरी जगह रक्खा हो, जीवन से रहित कर दिया हो, तो मेरा पाप निष्फल हो।
यह पाठ बोल कर फिर 'तस्स उत्तरी' का निम्नलिखित पाठ बोलना चाहिए:--
तस्स उत्तरीकरणेणं, पायच्छित्करणेणं, विसोहीकरणेणं, विसल्लीकरणेणं, पावाणं कम्मागां निग्घायणटाए ठामि काउस्सग्गं ।
अर्थात्----उस दूषित आत्मा को उत्कृष्ट (निष्पाप ) बनाने के लिए, प्रायश्चित्त के लिए, विशुद्धि करने के लिए, शल्यहीन करने के लिए, पापकर्मों का पूरी तरह नाश करने के लिए मैं कायोत्सर्ग करता हूँ।
___ कायोत्सर्ग करने की प्रतिज्ञा के उक्त पाठ का उच्चारण करने के पश्चात् कायोत्सर्ग में रक्खे जाने वाले आगारों का पाठ भी उसके साथ ही बोलना चाहिए । यथा
अन्नत्थ ऊससिएणं, नीससिएणं, खासिएणं, छीएणं, जंभाइएणं, उड्डुएणं, वायनिसग्गेणं, भमलीए, पित्तमुच्छाएसुहुमेहिं अंगसंचालेहि, सुहुमेहिं खेलसंचालेहिं, सुहुमेहिं दिहिसंचालेहिं, एवमाइरहिं आगारेहिं अभग्गो अविराहिलो हुज्ज मे काउस्सग्गो। जाव अरिहंताणं भगवंताणं नमुक्कारेण न पारेमि, ताव कायं ठाणेणं, मोणेणं, झाणेणं, अप्पाणं वोसिरामि ।
अर्थात्-(कायोत्सर्ग में समस्त शारीरिक क्रियाओं का त्याग करता है, किन्तु जिन क्रियाओं का त्यागना शक्य नहीं है) उनको छोड़ कर, यथा---