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* सागारधर्म-श्रावकाचार ॐ
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(२०) पाणीविहं-नदी, तालाब, कूप, नल, नहर, कुंड आदि के पानी की मर्यादा।
(२१) मुखवासविह-पान, सुपारी, लोंग, इलायची, जायफल, चूर्ण, खटाई, पापड़ आदि की मर्यादा ।
(२२) वाहनविहं-हाथी, घोड़ा, ऊंट, बैल आदि चलने वाली, गाड़ी, बग्धी, मोटर, साइकिल आदि फिरने वाली, जहाज, नौका, स्टीमर
आदि तिरने वाली, विमान, हवाई जहाज, गुब्बारा आदि उड़ने वाली तथा अन्य प्रकार की सवारियों की मर्यादा।
(२३) वाणह (उपानह) विहं-जूता, चप्पल, खड़ाऊं आदि की मर्यादा ।
(२४) सयणविह-खाट, पलंग, पाट, कोच, टेबिल, कुर्सी, बिछौने की जितनी भी जातियाँ हैं उन सब की मर्यादा ।
__(२५) सचित्तविहं-सचित्त बीज वनस्पति, पानी, नमक आदि की मर्यादा।
___ (२६) दव्वविहं—जितने स्वाद बदलें उतने द्रव्य गिने जाते हैं। जैसे-गेहूँ एक वस्तु है, पर उसकी रोटी, पूड़ी, थुली आदि बहुत-सी चीजें बनती हैं, वह सब अलग-अलग द्रव्य गिने जाते हैं। इसी प्रकार और और द्रव्य समझ लेना चाहिए। इन द्रव्यों की मर्यादा कर लेना द्रव्यविध कहलाती है।
उक्त छब्बीस प्रकार की वस्तुयों में कोई उपभोग की है और कोई परिभोग की है। इनमें सभी वस्तुओं का समावेश हो जाता है । श्रावक का कर्तव्य है कि जो-जो वस्तु अधिक पापजनक हो उसका परित्याग करे और जिन-जिन को काम में लाये बिना काम न चल सकता हो, उनकी संख्या का एवं वजन आदि की मर्यादा करे और अतिरिक्त का त्याग कर दे। मर्यादा की हुई वस्तुओं में से भी अवसरोचित कम करता जाय, उनमें