________________
* जेन-तत्व प्रकाश
५६८ ]
अष्टांग योग के ज्ञाता तथा साधक, कपिलकृत शास्त्र को मानने वाले, वन में निवास करने वाले, नम्र रहने वाले, सदैव परिभ्रमण करते रहने वाले, मठों का अवलम्बन करके क्षमा, शील, सन्तोष आदि गुणों के धारक, नारायण के उपासक तथा ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, इतिहास, पुराण, निघण्ड, व्याकरण, पष्ठितंत्र, शास्त्र के छह अंग, ज्योतिष आदि शास्त्रों के ज्ञाता, गुरुगम से इनके अर्थ को धारण करने वाले, इनमें पारगामी बने हुए और दूसरों को पढ़ाने वाले अक्षरों की उत्पत्ति, छंद बनाने की रीति, उच्चारण की विधि अन्वय-पदच्छेद करने की पद्धति, आदि में कुशल, तथा दान देना, शुचि रहना, तीर्थाटन करना आदि धर्म कार्यों का स्वयं श्राचरण करने वाले और दूसरों से पलवाने वाले, ऐमे तपस्वी दूसरों की आज्ञा से सिर्फ गंगा नदी का पानी ग्रहण करते हैं; दुसरे जलाशय का पानी नहीं लेते, वह भी बिना छाने नहीं लेते । गाड़ी, घोड़ा, नौका यदि चलते फिरते
* भरत चक्रवर्ती के पुत्र मरीचि ने श्रीऋषभदेव भगवान् के पास जैन दीक्षा तो धारण की थी, किन्तु वह साधु की दुष्कर चर्या का पालन करने में असमर्थ रहा। साथ ही पुनः गृहस्थ बनने में भी लज्जित हुआ। तब उसने मनःकल्पित लिग वेश धारण कर लिया । उसने सोचा- अन्य साधु निर्मल व्रतों के पालक हैं और मैं व्रत भंग करके मलीन हुआ हूँ, इसलिए मुझे भित्र ही प्रकार का वेष धारण करना चाहिए। यह सोच कर उसने भगवे वस्त्र धारण किये । अन्य साधु जिनाज्ञा रूप छत्र के धारक हैं, मैं ने जिनाज्ञा को भंग किया है,
तः मुझे कि छत्र धारण करना उचित है। अन्य साधु मनोदण्ड आदि तीन दण्डों के त्यागी हैं, मैं इन दंडों से दंडित हूँ, अतः मुझे लकड़ी का त्रिदंड रखना चाहिए । इस प्रकार सोचकर उसने मनःकल्पित नवीन वेष धारण किया और भगवान् के साथ रहने लगा । किन्तु वह समवसरण के बाहर रहकर उपदेश देता था । जिसे वैराग्य उत्पन्न हो जाता उसे भगवान् ऋषभदेव के पास दीक्षा लेने भेज देता था। एक बार जब मरीचि बीमार हो गया तो सेवाशुश्रूषा करने के लिए उसे चेला बनाने की आवश्यकता प्रतीत हुई। उस समय कपिल नामक एक गृहस्थ उसके पास आया । उपदेश सुनकर वह विरक्त हो गया । मरीचि ने उससे भगवान् ऋषभदेव के पास जाने को कहा, मगर वह गया नहीं। तब मरीचि ने उसे अपना ही शिष्य बना लिया । मरीचि आखिर प्राण त्याग कर देव हुआ। । कपिल का शिष्य श्रसुरी हुआ । उसे पठित ही छोड़ कर कपिल भी ब्रह्मलोक स्वर्ग में देव हो गया । उसने देवलोक से चाकर आसुरी को पढ़ाया. तब उसने नये शास्त्रों की रचना करके नवीन मत प्रचलित किया । वैष्णवधर्म के शास्त्र में कहा है कि भगवान् का पुत्र मनु, मनु का पुत्र मरीचि और मरीचि का पुत्र कपिल हुआ ।