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* सागारधर्म-श्रावकाचार *
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और साँप-बिच्छू आदि जहरीले जानवरों की झपट में आ जाने एवं विषभषण आदि हो जाने से प्राण भी संकट में पड़ जाते हैं अथवा अकालमृत्यु
अथीत-रात्रि में पानी रक्त के समान हो जाता है और अब मास के समान हो जाते हैं-रात्रि में भोजन करने वाले को तथा पानी पीने वाले को मांसभक्षण तथा रक्तपान करने के समान दोष लगता है, तो रात्रिभोजन कैसे किया जाय ? (महामारत, शान्तिपर्व)
उदकं नैव पातव्यं, रात्रावेव युधिष्ठिर !
तपस्विना विशेषेण, गृहिणा च विवेकिना ।। अर्थात्-हे युधिष्ठिर ! विवेकवान् गृहस्थों को और विशेषतया तपस्वियों को रात्रि में पानी नहीं पीना चाहिए।
ये रात्रौ सर्वदाऽऽहार, वर्जयन्ति सुमेधसः ।
तेषां पक्षोपवासस्य, फलं मासेन जायते ।।
अर्थात्-जो बुद्धिमान् मनुष्य कभी भी रात्रिभोजन नहीं करते हैं, उन्हें प्रतिमांस एक पखवाड़े (१५ दिन) के उपवास का फल प्राप्त होता है ।
नैवाहुतिन च स्नानं, न श्राद्धं देवतार्चनम् ।
दानं नं विहितं रात्रौ, भोजनं तु विशेषतः ।।
अर्थात्-रात्रि में देवता को आहुति (होम), स्नान, श्राद्ध, देवपूजन, दान-इतने काम नहीं करने चाहिए और भोजन तो खास तौर से नहीं करना चाहिए।
हनाभिपद्मसंकोचण्डरोचेरभावतः।।
अतो नक्तं न भोक्तव्यं, सूक्ष्मजीवादनादपि ॥ -आयुर्वेद । अर्थात्-सूर्य अस्त होने पर हृदयकमल और नाभिकमल संकुचित हो जाता है, अतः राजिभोजन रोगोत्पादक है। इसके अतिरिक्त भोजन के साथ छोटे-छोटे जीव भी लाने में भा जाते हैं । अतः रात्रिभोजन नहीं करना चाहिए ।
मेघा पिपीलिका हन्ति यूका कुर्याज्जलोदरम्, कुरुते मक्षिका वान्ति कुष्ठरोगं च कोलिका । कंटकं दारुखण्डं च वितनोति गलम्यथाम्.
व्यञ्जनान्तर्निपतितं तालुविभ्यति वृश्चिकः॥ -योगशाख ।
अर्थात् रात्रि में भोजन करते समय भोजन में चिउटी भी जाय तो बुदिका नाश होता है, जूा जाय तो जलोदर रोग हो जाता है, मक्सी श्रीवाय तो गमन हो