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* जैन-तत्व प्रकाश *
विश्वास नहीं करता। झूठे के मन्त्र, तन्त्र, यन्त्र, विद्या, औषध आदि फलित नहीं होते हैं । झूठे को कभी-कभी अकालमृत्यु का ग्रास बनना पड़ता है। झूठे को लोग गप्पी, लवार, लुच्चा, बदमाश, ठग, धृतं श्रादि कुनामों से सम्बोधन करते हैं । इत्यादि अनेक दुर्गुणों और अनर्थों का भागी इसी लोक में बनना पड़ता है। परलोक में भी उसकी दुर्दशा होती है। अठा मर कर मूक, बोवड़ा, कटुभाषी, तोतला, गँगा, दुर्गन्धित मुख वाला और अनेक प्रकार के रोगों से ग्रस्त होता है । वह प्रायः एकेन्द्रिय जाति में उत्पन्न होता है । नरक में जाय तो वहाँ परमाधामी देव उसके मुख में काँटे ह्सते हैं, कटारी घुसेड़ते हैं, जीभ खींच कर निकाल लेते हैं । इत्यादि झूठ के दुःखप्रद फल समझ कर सुज्ञ जनों को झूठ बोलने का सवेथा परित्याग कर देना ही उचित है।
सत्य का फल
सत्य की महिमा अपार है। सत्यवान् की ओर सब सद्गुण प्राकर्षित होकर चले आते हैं । सत्यवादी सब का विश्वासभाजन होता है । कृत धर्म का सच्चा फलदाता सत्य ही है । 'सत्य की बन्धी लक्ष्मी फिर मिलेगी प्राय' इस कथन के अनुसार सत्य ही लक्ष्मी का निवास स्थान है । जो सत्यनिष्ठ है, उसके समस्त कार्य अनायास और शीघ्र ही सिद्ध हो जाते हैं ।
अथर्वणवेद के माण्डूक्योपनिषद् में कहा है कि:
सत्यमेव जयते, नानृतम् । अर्थात्-विजय सत्य से ही होती है, असत्य से नहीं।
नास्ति सत्यसमो धों, न सत्याद्विद्यते परम् । न हि तीव्रतरं किञ्चिदनृतादिह विद्यते ॥
-महाभारत, आदि पर्व । अर्थात्-जगत् में न तो कोई धर्म सत्य के समान है और न सत्य से बढ़ कर है इसी प्रकार असत्य से बढ़ कर कोई बड़ा पाप ही इस संसार में विद्यमान है-असत्य अस्या तीब पाप है।