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# উলব সাহা ও
चौकी लगवाते हैं, स्वयं जागते रहते हैं । इत्यादि अनेक प्रयत्न करके उसकी रक्षा करते हैं । पर अन्याय से धन कमाने वाले चोर-डाकू आदि धनवानों के दुःख और शोक की परवाह नहीं करते । वे कुदाल, कोश आदि लेकर, भीत आदि फोड़ कर, दरवाजा आदि तोड़ कर, दीवार फाँद कर, गुप्त रूप से रक्खे हुए धन के पास किसी तरह पहुँच जाते हैं और उस धन को निकाल ले जाते हैं। जब धनवान् को इसका पता लगता है तो उसका दिल बैठ जाता है। वह विलाप करता है, हाय हाय करता है, सन्ताप करता है और दुःख से पीड़ित होता है । कितने ही लोग तो प्राण भी छोड़ देते हैं । संयोगवश चोर अगर पकड़ा जाता है तो उसको कारागार भुगतना पड़ता है, मार-पीट, ताड़ना-तर्जना, भूख-प्यास आदि अनेक प्रकार के कष्ट भोगने पड़ते हैं । कभी-कभी इन भयानक कष्टों के कारण अकालमृत्यु को भी ग्रास बनना पड़ता है और फिर- नरक की असीम वेदनाओं का पात्र बनता है । इस प्रकार चोरी का काम दोनों लोकों में दुःखप्रद है, ऐसा जान कर श्रावक चोरी के कार्यों का परित्याग करता है।
(२) गठड़ी छोड़कर-ग्रामान्तर या देशान्तर में जाते समय तथा चोर आदि से बचाने के लिए अपने प्राणों से प्यारे द्रव्य को नौली, डब्बा, गठड़ी, सन्दूक, पिटारे आदि में रख कर, अपने पड़ौसी, मित्र, साहूकार या सम्बन्धी पर विश्वास लाकर, उनके पास रख देते हैं । फिर वे पड़ौसी
आदि उस धन के लालच में फंसकर, नौली आदि को फाड़ कर, तोड़ कर उसमें से धन निकाल लेते हैं और आप साहूकार बने रहने के लिए, उसमें खराव माल भर देते हैं और फिर ज्यों का त्यों उसे जोड़ देते हैं। रखने वाला जब माँमने आता है तो उसे सौंपते हुए अपनी साहूकारी जतलाने के लिए कहते हैं-देख भाई, अच्छी तरह सम्भाल ले । बाद में हम जिम्मेदारा नहीं होंगे। वह क्वारा भोला उनके प्रपंच को नहीं समझ पाता। उन पर विश्वास करके, ऊपर-ऊपर से देखकर, खोले बिनाहीं घर ले जाता है। बड़ी उमंगा के साथ घर पहुँच कर उसे खोल कर देखता है। जप अपना रतला माल उसमें नहीं पाता तो उसे ऐसी व्यथा होती है, जैसे किसी ने