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* सागारधर्म-श्रावकाचार 2
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सत्य के प्रभाव से भयंकर रोग भी नष्ट हो जाते हैं। सत्य के प्रभाव से संग्राम में तथा संवाद में भी विजय की प्राप्ति होती है। सत्यवान् को मन्त्र, तन्त्र, यन्त्र, विद्या और औषध आदि तत्काल फलित होते हैं। सत्यवादी सदा निश्चिन्त रहता है। उसे किसी से मुँह नहीं छिपाना पड़ता । सत्यवान् का कथन नरेन्द्र-सुरेन्द्र आदि को भी मान्य होता है। जो अन्त:करण में सत्य को ही स्थान देता है, उससे बड़े-बड़े पुरुष, यहाँ तक कि उसको अपना शत्र मानने वाले भी सम्मति माँगते हैं। सत्य में ऐसी शक्ति है कि शत्रु भी सत्यवान् के वशीभूत हो जाते हैं । सत्य का सेवक इसी लोक में देवेन्द्रों और नरेन्द्रों का पूज्य बन जाता है और भविष्य में इष्ट, मिष्ट, प्रिय, आदेय वचन वाला और स्वर्ग तथा मोक्ष का अधिकारी बन जाता है।
तीसरा अणुव्रत-स्थूल अदत्तादानविरमण
साधु सर्वथा प्रकार से अदत्तादान के त्यागी होते हैं, मगर गृहस्थ के लिए ऐसा करना कठिन है, क्योंकि तृण, कंकर, धूल आदि जैसी चीजें ग्रहण करते समय गृहस्थ किसी की आज्ञा की दरकार नहीं करते । मोल लाई हुई वस्तु कदाचित् देने वाले की निगाह चूक जाने से अधिक श्रा जाय तो वापिस लौटाने कौन जाता है ? इस प्रकार संसार सम्बन्धी कामों में सहज ही चोरी का दोष लग जाता है । ऐसी साधारण चोरी यद्यपि लोकविरुद्ध नहीं गिनी जाती है तथापि धर्मविरुद्ध तो है ही। इससे जितना बचाव हो सके उतना ही अच्छा, नहीं तो निम्नोक्त पाँच प्रकार से बड़ी चोरी करने का प्रत्याख्यान तो श्रावक को अवश्य करना चाहिए:
(१) सेंध लगाकर-गृहस्थों को धन प्राणों से भी अधिक प्यारा होता है । धनपति लोग अपनी-अपनी बुद्धि के अनुसार धन का संरक्षण करने का ऐसा उपाय करते हैं कि वह उनके पास से कहीं भी चला न जाय । कोई धन को जमीन में गाड़ देते हैं, कोई तिजोरी में बन्द कर देते हैं, पहरा और