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* सागारधर्म-श्रावकाचार *
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(१२) शोक-वियोग आदि के अवसर पर शोक के कारण झूठ बोला जाता है।
(१३) दाक्षिण्य-अपनी चतुरता दूसरों को बताने के लिए वकील श्रादि झूठ बोलते हैं।
(१४) बहुभाषण-आवश्यकता से अधिक-बहुत बोलने से भी झूठ बोला जाता है।
श्रावक जन प्रथम तो इन चौदह कारणों के वशीभूत नहीं होते हैं। वे प्रत्येक स्थिति में मर्यादा का ध्यान रखते हैं। कदाचित् वशीभूत हो जाएँ तो भी झूठ नहीं बोलते हैं ।
कितने ही वचन यथार्थ होते हुए भी सत्य नहीं-असत्य सरीखे ही होते हैं । जैसे—अन्धे को अन्धा कहना, काने को काना कहना, कुष्ठ रोगी को कोढ़िया कहना, नपुंसक को नामर्द, हीजड़ा कहना, चोर को चोर कहना, जार को नार कहना, लवार को लवार कहना, गोले को गोला कहना, विधवा स्त्री को रांड कहना, बन्ध्या को बाँझड़ी कहना। इत्यादि वचन कुछ हिस्सों में सत्य होते हैं, तथापि मनुष्यों को दुःखप्रद होने के कारण भगवान् ने उन्हें असत्य कोटि में ही स्क्खा है । अतएव श्रावक को ऐसे बचन बोलना । उचित नहीं है। *
सत्य का फल
झूठ बोलने वाले के सब सद्गुण लुप्त हो जाते हैं । झूठे आदमी की प्रतीति नहीं रहती । वह चाहे सत्य ही बोल रहा हो, फिर भी कोई उस पर
न सत्यमपि.भाषेत, परपीडाकारकं हि यत् ।
लोकेऽपि.श्रयते यस्मात, कौशिको नरकं गतः॥ जो वचन दूसरे को पीडाकारक हो, वह सत्य हो तो भी.नहीं बोलना चाहिए। क्योंकि लौकिक शास्त्रों में भी सुना जाता है कि कौसिक मुनि झुलवायक कलन बोलने के कारण नरक में गये।