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सागारधर्म-श्रावकाचार ®
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वत के कारण विरोधी को फंसाने के लिए दगाबाजी करते हैं। जैसे-सौ के आगे एक बिन्दी लगाकर हजार बना देते हैं। अन्य के अक्षरों जैसे अक्षर बना कर झूठी चिट्ठी, हुँडी आदि लिख लेते हैं, झूठे रुक्के या खत बनाते हैं, गरज वाले को एक सौ रुपये देकर दो सौ लिखवा लेते हैं और फिर उसे फँसा कर दो सौ वसूल करते हैं, लाँच-रिश्वत देकर झूठी गवाही खड़ी करते हैं, इत्यादि अनेक प्रकार से झूठे लेख लिख कर झूठे झगड़े खड़े करते हैं। जिसके विरुद्ध ऐसी कारवाई की जाती है, उसे जब इस प्रपंच की बात मालूम पड़ती हैं तो वह दहशत खा जाता है, उसे बड़ी भयानक वेदना होती है, मगर बेचारा निरुपाय हो कर, अपनी आवरू बचाने के लिए जेवर कपड़े मकान आदि बेच कर या गिरवी रखकर किसी प्रकार चुकाता है । ऐसी
आपदा में फंस कर कितनेक लोग तो प्राणों से भी हाथ धो बैठते हैं। कदाचित् यह दगावाजी प्रकट हो जाती है तो उस दगाबाज़ की, धन की
और प्रतिष्ठा की जबर्दस्त हानि होती है। ऐसे अकृत्य से, अनीति से उपार्जित किया हुआ धन भी अधिक समय तक नहीं ठहरता है।
इस प्रकार दूसरे व्रत के अतिचारों को समझ कर विवेकशील श्रावक उनसे सदैव. बचते रहने का प्रयास करे और अपने व्रत को दृढ़ता के साथ निर्दोष रूप में पालन करे।
असत्य भाषण के मुख्य कारण
यों तो असत्य भाषण करने के कारणों की गिनती नहीं की जा सकती, मगर मुख्य-मुख्य कारणों पर विचार किया जाय तो वे चौदह हैं। इन चौदह कारणों में ही प्रायः सब का समावेश हो जाता है । चौदह कारण निम्नलिखित हैं:
(१) क्रोध-क्रोध में मनुष्य पागल हो जाता है। क्रोध का जब तीव्र भावेश होता है तो क्रोधी को उचित-अनुचित का अथवा सत्य और असत्य का भान नहीं रहता। उस अवस्था में क्रोधी ऐसे भयानक असत्य का उच्चारण कर देता है, जिससे कमी-कमी पंचेन्द्रिय जीव का.मी पास