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ॐ सागारधर्म-श्रावकाचार *
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स्थिति में स्त्री की कोई अयोग्य बात अगर पति किसी दूसरे के सामने प्रकाशित कर दे और स्त्री को इसका पता लग जाय तो उसे मार्मिक वेदना होती है । स्त्री का हृदय इतना कोमल होता है कि वह अपने रहस्यभेद को सहन नहीं कर सकती और कदाचित् अपघात भी कर लेती है । इस प्रकार का अनर्थ समझ कर श्रावक अपनी पत्नी की कही हुई बात दूसरे के आगे कदापि प्रकट नहीं करता। इसी प्रकार पत्नी को भी चाहिए कि कदाचित् मोहाधीन होकर पति ने अपनी कोई गुप्त बात कह दी हो तो वह किसी के सामने उसे प्रकट न करे । कदाचित् कोई मित्र या प्रेमी स्वजन अपनी कोई रहस्यमय बात कह दे तो उसे भी प्रकाशित कर देना उचित नहीं है । ऐसा करने से श्रावक की महत्ता को कलंक लगता है।
उक्त तीनों अतिचारों के त्याग का मुख्य आशय यही है कि यथाशक्ति गुणवानों के गुणों का आदर करना चाहिए, गुणों की प्रशंसा करनी चाहिए, किन्तु किसी के दुर्गुणों को भूलकर भी प्रकट नहीं करना चाहिए ।
___ (४) मृषोपदेश-अर्थात् झूठा उपदेश देना। जैसे-हिंसा आदि पाँच आस्रवों का उपदेश देना, अष्टांग निमित्त का उपदेश देना, मन्त्र, तन्त्र आदि का उपदेश देना, हिंसाकारी यज्ञ-हवन आदि का उपदेश देना, स्नान करने का, फल-फूल आदि तोड़ने का उपदेश देना, हिंसामय धर्म का,, दया अनुकम्पा को उठाने का, चारों तीर्थों की विनय-भक्ति को विच्छिन करने का उपदेश देना, मरीबों-अनाथों को अन्न-वस्त्र आदि देकर साता पहुँचाने में पाप बतलाना, क्लेश-उत्पादक और क्लेशवर्धक उपदेश देना, पुत्र, पिता, स्त्री, पति, सेठ, नौकर, भाई-माई आदि में विरोध पैदा करने बाला उपदेश देना, स्त्रीकथा, राजस्था, देशकथा, भोजनकथा, चोरकथा, जारकथा इत्यादि विकथाएँ करना, प्रपंच रच कर दूसरों को ठगने या पसजित करने की युक्ति बतलाना, सम्मति देना, आदि-आदि अनेक प्रकार से मिथ्या उपदेश देना मृषोपदेश कहलाता है। जिसके उपदेश से प्रारम्भ और मलेश.आदि. निष्पन्न होता है, वह भी उस पल का भागी बनता है.। अतएव निरर्थक बातें बनाने का श्रावक को अधिकार नहीं है। प्रयोजन होने पर