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* सागारधर्म - श्रावकाचार *
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देते हैं, किन्तु बहुत मूल्य का माल अल्प मूल्य में मिलता देख कर, उसे चोरी का माल समझ लेते हैं, फिर भी सोचते हैं कि मैं ने ती चोरी करने का त्याग किया है, घर आया माल कीमत देकर ले लेने में क्या हर्ज है ? और इस प्रकार अपने मन को तसल्ली देकर उस माल को खरीद लेते हैं। मन ही मन बहुत प्रसन्न होते हैं कि आज अच्छी कमाई हुई । उस समय उन्हें यह विचार नहीं आता कि अगर यह बात प्रकट हो जायगी तो दुगुना चौगुना द्रव्य खर्च करने पर भी इज्जत की रक्षा करना कठिन हो जायगा । कोई-कोई तो घृष्टता करके कह देते हैं कि हमें कैसे पता चले कि यह माल चोरी का है । मगर वे यदि लालच के पर्दे को हटा कर आँख खोल कर देखें कि सौ रुपये का माल पचहत्तर रुपये में क्यों मिल रहा है, तो उन्हें पता लगे विना नहीं रहेगा । इसके अतिरिक्त चोर की आँखें और बोली भी छिपी नहीं रहती । विवेकी श्रावक लालच में न फँसते हुए चोरी का माल लेना चोरी करने के समान ही समझ कर उसका परित्याग कर देते हैं ।
(२) तस्करप्रयोग - अर्थात् चोर को चोरी करने में सहायता देना । यह भी चोरी का अतिचार है । कितनेक लोभी चोरी का माल लेने में
* प्रश्नव्याकरण सूत्र में चोर की १८ प्रसूतियाँ कही हैं । वे इस प्रकार हैं:
(१) चोर से कहा कि मुझे अपने में शामिल समझो। मैं समय पर तुम्हारी सहायता करूँगा । (२) चोर की सुख साता पूछना (३) उंगली आदि से चोरी करने का स्थान बतलाना (४) पहले साहूकार बन कर राजा या सेठ आदि का स्थान देख आना और फिर चोर को वह स्थान बतलाना । (५) चोर को छिपने का स्थान बतलाना (६) चोर को पकड़ने वाले श्रावें तो चोर पूर्व में गया हो तो पश्चिम में बतलाना और पश्चिम में गया हो तो पूर्व में बतलाना (७) चोर को रहने के लिए मकान देना, बैठने के लिए आसन देना और सोने के लिए विस्तर आदि देना (८) चोर कहीं पड़कर या गोली आदि के घात से घायल हो गया हो तो उसे घर पहुँचाने के लिए अश्व आदि वाहन देना (६) चोर की घर जाने की शक्ति न हो तो अपने घर में छिपा कर रखना (१०) चोर का माल खरीदना (११) चोर का सत्कार करने के लिए उसे ऊँचे स्थान पर ऊँचे आसन पर बिटलाना (१२) घर में हो फिर भी पकड़ने वाले से 'नहीं है' ऐसा कह देना (१३) घर आये चोर को आहार, पानी, वस्त्र आदि देकर साता उपजाना और साथ में भाता ( मार्ग में खाने के लिए भोजन) रख देना (१४) चोर को