________________
® सागारधर्म-श्रावकाचार .
قومی ]
कलेजे में छुरी भौंक दी हो ! गहस्थ को एक पाई की हानि होती है तो भी उसको अन्न पर से प्रीति उतर जारी है । तो फिर सारी जिन्दगी का आभार भंग हो जाने पर उसे कितनी दुस्सह वेदना होती होगी ? इस प्रश्न पर आप अपने अनुभव से ही विचार कीजिए । यह चोरी का काम घोर विश्वासकातमय और महापातकपूर्ण है, ऐसा जान कर श्रावक इसका त्याग करता है। ___ (३) बाट पाड़कर-तात्पर्य यह है कि कितने ही अनीति और अत्याचारपूर्वक द्रव्य उपार्जन करने वाले लोग अपने जैसे लोगों की टोली बना लेते हैं । वे जंगल आदि विषम स्थानों में रहते हैं और राहगीरों को शस्त्र से डरा-धमका कर, मार-पीट कर, लूट-खसोट करते हैं। इसी प्रकार कितने ही दुस्साहसी लुटेरे खेतों में, ग्रामों में, बाजारों में या घरों में लूट मचा देते हैं। कितनेक तो धनी की निगाह बचा कर, जेब कतर लेते हैं और रुपया-पैसा या जेवर निकाल देते हैं। कहाँ तक कहा जाय, कोई-कोई नृशंस लोग तो जेवर के लालच में पड़ कर अपनी मनुष्यता को तिलांजलि दे बैठते हैं और एकदम पैशाचिक अत्ति धारण करके अबोध शिशुओं को मार डालते हैं। अचानक किसी गाँव में पहुँच कर डाका डाल देते हैं। अनेक स्त्रियों और पुरुषों के प्राण ले लेते हैं । इस प्रकार अनेक तरीकों से निर्दय कृत्य करके लूट-खसोट करते हैं। ऐसे लोग जब पकड़ में आते हैं और चंगुल में कैंस जाते हैं तो फाँसी पर चढ़ाये जाते हैं । धन के साथ प्राणों से भी हाथ धो बैठते हैं। वही धन उनकी मौत का कारण बनता है। परभव में वे दुर्गति के दुरुसह दुःख भोगते हैं। ऐसे कृत्य को घोर अनर्थ का कारण जान कर श्रावक उससे दूर ही रहते हैं।
(४) ताले में कुँची लगा कर--अर्थात् कोई मनुष्य अपने घर, भंडार, कोठार, दुकान, तिजोरी, सन्दूक आदि पर ताला लगा कर अपने किसी विश्वासपात्र मनुष्य को उसकी कूची (चावी) सौंप देते हैं । फिर कुँची सम्भाहने वाला धन के खोम में फंस कर, उसकी मैरमौजूदगी में, उसी कैंची से महबासाहोल कर माल निकाल लेता है और फिर ज्यों का त्यों ताला