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® जैन-तत्त्व प्रकाश,
प्रामाणिक, सत्य, निर्दोष वचन उच्चारण करके * अपनी आत्मा को पाप से बचाने वाले ही सच्चे श्रावक कहलाते हैं ।
(५) कूटलेखकरण-अर्थात् झूठा लेख लिखना भी अतिचार है। कितने ही लोग लालच में पड़कर भोले लोगों को लूटने के लिए या अदा
* बोलने के विषय में श्रावक को आठ गुण धारण करने चाहिए:
(१) अधिक बोलने से प्रतिष्ठा नहीं रहती, इसलिए बहुत अर्थ वाले थोड़े शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।
(२) थोडा बोलने में भी अमनोज्ञ शब्दों का प्रयोग न करे । थोडे-से अमनोज्ञ वचन भी दुःखदाता और निन्दाकारक हो जाते हैं, अतः श्रावक इष्ट, मिष्ट और पश्य पचन ही बोले।
(३) मिष्ट वचनों को बोलते समय भी अवसर का खयाल रक्खे । विना अवसर की अच्छी बात भी बुरी लगती है, जैसे विवाह के समय कोई राम नाम सत्य है' कह दे तो लोग लड़ने-मरने को तैयार हो जाते हैं। इसके विरुद्ध अवसर के अनुकूल कही हुई बुरी बात भी भली लगती है। स्त्रियाँ जमाई या सम्बन्धियों को गाना गाकर बुरी-बुरी गालियाँ सुनाती हैं, फिर भी लोग प्रसन्न होते हैं । अतएव श्रावक अवसर देख कर बोले ।
(४) अवसरोचित भी चतुराई से बोले । वाक्चातुर्य से बड़े-बड़े राजा-महाराजाओं को और बड़ी-बड़ी सभाओं को प्रभावित एवं आकर्षित किया जा सकता है, अतएव श्रावक चतुराई के साथ बोले।
(५) चतुराई से तो बोले, किन्तु अपने मुख से अपनी श्लाघा करने से लघुता प्रकट होती है और दूसरे के गुणों की प्रशंसा करने से अपने गौरव की वृद्धि होती है । इसलिए आत्मप्रशंसा न करे, अमिमानरहित होकर बोले ।
(६) अभिमान-रहित तो बोले किन्तु मर्मवेधी वचन दूसरों को अनिष्ट होते है। ऐसे वचन बोलने वाले को शहद की छुरी कहते हैं । अतः किसी के मर्म (दुर्गुण) को प्रकाशित न करे।
(७) मर्म-वेधी वचन न बोलते हुए भी, जो कुछ बोले शास्त्र की साक्षी से बोले, क्योंकि ऐसे वचन सर्वमान्य और प्रतिष्ठापात्र होते हैं ।
(८) शास्त्र की साक्षी से बोलता हुआ भी अवसर देखकर सब को साताकारी होने बाले वचन बोले । किसी के दिल को चुभने वाली बात मुख से न कहे।