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जैन-तत्व प्रकाश*
भार्थिक मूल्य होने से ही कोई वस्तु मूल्यवान् और आर्थिक मूल्य न होने से मूल्यहीन नहीं हो जाती । वस्तु का महत्व और-और दृष्टियों से भी समझना चाहिए । जल जगत् का जीवन है। जीवन की दृष्टि से उसका बहुत मूल्य है । दूध और घी के बिना करोड़ों मनुष्य जन्म व्यतीत कर देते हैं, किन्तु पानी के विना एक भी दिन व्यतीत करना बड़ा कठिन हो जाता है। इस दृष्टि से जगत् के अन्य सब पदार्थों से जल अधिक मूल्यवान् है। इस तरह की विवेकदृष्टि प्राप्त करके श्रावक जन मिथ्यात्वियों की देखादेखी नहीं करते हैं । अर्थात् वे ग्रहण आदि के प्रसंग पर पानी नहीं फेंकते हैं, पानी में हड्डियाँ या राख नहीं डालते हैं, पानी में घुस कर स्नान नहीं करते हैं, विना छने पानी से शरीर या वस्त्र नहीं धोते हैं, न पीते हैं। होली आदि पर्यों के प्रसंग पर पानी उछालना, रंग डालना आदि कार्य करके पानी की हानि नहीं करते हैं। कुए, बावड़ी, नल श्रादि की मर्यादा करते हैं। कितनेक विशेष धर्मात्मा श्रावक सचित्त पानी पीने का भी प्रत्यख्यान कर लेते हैं
और घी आदि से भी पानी की अधिक यतना करते हैं। क्योंकि जीवन की दृष्टि से घी-द्ध आदि की अपेक्षा पानी अधिक मूल्यवान् पदार्थ है। धी निर्जीव है, पानी के एक बूंद में असंख्यात जीव होते हैं ।
(३) तेजस्काय-अग्नि दशों दिशाओं का शस्त्र है। इसकी झपट में आते ही छहों कायों के जीव भस्म हो जाते हैं। ऐसा जानकर श्रावक को यथासम्भव अग्नि के प्रारम्भ से अवश्य बचना चाहिए। कितनेक लोग शरीर पर पर्याप्त पत्र होने पर भी, गरीबों की देखादेखी, रास्ते का कूड़ाकचरा इकट्ठा करके आग जला कर तापने बैठ जाते हैं, तथा अलाब, अँगीठी, सिगड़ी आदि में लकड़ी, छाने आदि संसार के अनेक कार्यों में उपयोग में आने वाले पदार्थों को जला कर, अपने क्षणिक सुख के लिए ताप करते हैं। इस प्रकार तापने से शरीर के सौन्दर्य का नाश होता है, भागे गर्मी और पीछे सर्दी लगने से सर्द गर्मी की बीमारी हो जाती है, अगर वन आदि में भाग लग जाय तो अकालमृत्यु की सम्भावना