________________
* सागारधर्म -श्रावकाचार *
[ ६८७
आदि के दुःख से मुक्त करने के लिए उनके अंगोपांग का छेदन करना पड़े तो आराम होने से पहले उनसे कुछ भी काम नहीं लेना चाहिए। इसी प्रकार पुत्र, पुत्री, स्त्री आदि को जेवर पहिनाने के लिए उनके कान या नाक छिदवाना आवश्यक हो तो उनकी इच्छा के बिना जबर्दस्ती से छेदन न करावे ।
(४) अतिभार - मनुष्य, पशु आदि पर उनकी शक्ति से अधिक ater लादना अतिभार नामक अतिचार है । जैसे—अश्व, बैल, भैंसा, हमाल, मजदूर आदि के द्वारा एक जगह से दूसरी जगह माल पहुँचाने का अवसर या जाय तो जिसकी पीठ पर, कंधे पर चांदी, गूमड़ा यदि किसी प्रकार का दर्द हो या लँगड़ा, लूला, अपंग, दुर्बल, रोगी, कम उम्र वाला, वृद्ध वय वाला या हीन शक्ति वाला हो, उस पर किसी प्रकार का वजन न लादे । ऐसे पर वजन लादने से उसे बहुत कष्ट होता है और कदाचित् मर भी जाता है। अगर कोई गरीब हो और उदरपूर्ति के लिए भार उठाना स्वीकार भी कर ले तो उस पर दयाभाव लाकर बिना काम लिये ही यथाशक्ति उसकी सहायता करना दयालु श्रावकों का कर्त्तव्य है । जो निरोगी, हृष्ट-पुष्ट एवं वजन उठाने में समर्थ हो, उस पर भी उसकी शक्ति से अधिक या राज्य के द्वारा बंधी हुई मर्यादा से अधिक वजन न लादे । अगर प्रमागोपेत वचन उस पर लाद दिया हो तो सवारी न करे । सवारी करना हो तो उसी परिमाण में वजन कम लादे । मनुष्य से वजन उठवाते समय पूछ ले कि तू इतना वजन उठा सकेगा ? शक्ति से अधिक उठाने के लिए कभी कहे नहीं। सवा मन के बोझ को सन भर कहकर, झूठ-कपट से उस पर बोझ लादे नहीं । इसी प्रकार शक्ति से ज्यादा कोस आदि की मर्यादा से अधिक न ले जावे ।
(५) भक्तपानविच्छेद – भोजन - पानी में विच्छेद करे - अन्तराय डाले तो यह अतिचार लगता है। जो स्वजन, मित्र, गुमाश्ता, दास, दासी, नौकर, गाय, आदि पशु वगैरह-वगैरह, जो आश्रित रहने वाले हों, उन्हें क्रोध के आवेश में आकर, या किसी अपराध का दण्ड देने के अमि