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ॐ जैन-तत्त्व प्रकाश
पतला कर उसे बेच देते हैं । जब कहे हुए गुण उसमें नहीं पाये जाते तो खरीदने वाले को बड़ा भारी पश्चात्ताप होता है। उस पशु को भी दुःख भोगना पड़ता है। श्रावक को ऐसा व्यवहार करना भी उचित नहीं है । अतः श्रावक चतुष्पद सम्बन्धी असत्य का भी त्याग करे ।
(३) भूम्यलीक–अर्थात् जमीन संबंधी झूठ । जमीन दो प्रकार की होती है-(१) क्षेत्र-खुली भूमि, जैसे खेत, बाड़ी, बाग, अडाण, जंगल, तालाब, कुंआ, बावड़ी आदि । (२) वास्तु-टॅकी हुई भूमि, जैसे महल, हवेली, घर, दुकान, बंगला, बखार, नोहरा आदि । इनके विषय में झूठ बोलना भूम्यलीक है । जैसे—किसी खेत में या बाग आदि में धान्य या फल आदि की थोड़ी उपज होती हो अथवा खराब उपज होती हो, फिर भी उसे खूब उपज वाला या अच्छी उपज वाला बतलाना; कूप, तालाब आदि जलाशय का पानी खराब हो, रोगकारी ही किन्तु उसे स्वादिष्ठ और स्वास्थ्यकर बतलाना, मकान में व्यन्तर का या सर्प आदि का उपद्रव हो फिर भी उसे निरुपद्रव और साताकारी बतलाना, इस तरह खराब वस्तु को अच्छी कह कर दूसरों को बहुत कीमत में बेचकर फंसाने से तथा दुश्मन की वस्तु को भी बुरी बतला कर उसके ग्राहकों को भरमा कर लाभान्तराय देने से कई झगड़े खड़े हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त श्रावक का विश्वास उठ जाता है । और भी अनेक प्रकार की हानियाँ होती हैं। अतः उक्त प्रकार का झूठ बोलना, धोखा देना उचित नहीं है।
___ इस 'भूम्यलीक' शब्द में सब अपद ( विना पैर की ) वस्तुओं का समावेश होता है। अतएव सचित्त मिट्टी, पानी, वनस्पति, फल, फूल, प्रादि के लिए तथा अचित्त वस्तु वस्त्र, आभूषण, सोना, चांदी, पात्र प्रादि के लिए और मिश्र वस्तु-किराना आदि के लिए भी झूठ नहीं बोलना चाहिए। क्योंकि इस प्रकार का झठ भी अनर्थ का कारण है।
(४) थापणमोसो (स्थापनामृषा)-किसी की धरोहर को दबाने के लिए झूठ बोलना थापखमोसो' कहलाता है । कोई मनुष्य बोर मरिश्रम से