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® सागारधर्म-श्रावकाचार ,
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उक्त पहले व्रत के पाँचों अतिचार मनुष्य को अधोगति में ले जाने वाले हैं। अपनी आत्मा को इनसे बचाने के लिए इन्हें जानना तो जरूर चाहिए किन्तु आचरण नहीं करना चाहिए। जो जीव दया भगवती का निरतिचार रूप से आराधन करेंगे वे दोनों लोकों में प्रारोग्यता प्राप्त करेंगे, बलवान् होंगे, यशवान् होंगे, विजय और वैभव प्राप्त करके उसके भोक्ता बनेंगे और क्रमशः थोड़े ही भवों में अनन्त मोबसुख के भोगने वाले बन जाएंगे।
जैसे किसान धान्य की रक्षा के लिए खेत के चारों ओर वार लगाते हैं, उसी प्रकार अहिंसाव्रत की रक्षा के लिए आगे कहे जाने वाले सत्यव्रत आदि का पालन किया जाता है।
२-दूसरा अणुव्रत-स्थूलमृषावादविरमण
गृहस्थ के लिए साधु की तरह सर्वथा नृपाबाद (असत्व भाषण) से विवृत होना कठिन है । गृहस्थ प्रायः सहज ही कह देते हैं-'अरे उठ, पहर दिन चढ़ गया !" वास्तव में दिन बड़ी भर भी नहीं चढ़ा होता। इत्यादि अनेक प्रकार झूठ वचन सहज ही बोल देते हैं, इसलिए मृहस्थ को स्थूल मृशावाद अर्थात् बड़े मषावाद से निवृत्त होना चाहिए । शास्त्रों में पाँच बड़े मृषावाद कहे हैं। वे इस प्रकार हैं:
(१) कन्यालीक (कन्नालीए) अर्थात् कन्या (कुमारिका ) सम्बन्धी अलीक (मृषावाद)। जैसे कितने ही श्रीमान् अपनी पुत्री को श्रीमानों के
रखते थे, तो यह कथन शास्त्र से संगत नहीं होता, क्योंकि साधुजी-तो दोपहर दिन आये वाद गोभरी जाते थे। इससे ज्ञात होता है कि उक्त नियम अभ्यगतों के लिए ही था। 'अफसोस है कि इस शास्त्र को मानने वाले ही भूखे-प्यासे को देने में एकान्त पाप बतलाते हैं।
जिनवाणी को विपरीत परिणमा कर भोले लोगों को ग्राम में फंसाते हैं। मगर विवेकी जनों को बम में नहीं फंसना चाहिए।