________________
* सागारधर्म - श्रावकाचार
[ ६८१ :
के व्यापार का, सचित्त चार आदि से वस्त्र धोने का, सचित मिट्टी से दातौन करने का तथा हाथ धोने का, चूला, कोठी आदि उपकरण और नया मकान बनवाने का, इत्यादि प्रकार से पृथ्वीकाय की हिंसा का यथाशक्ति प्रत्याख्यान करे, वृथा मिट्टी के ढेर को खूँदे नहीं, मिट्टी के ऊपर बैठे नहीं, पत्थर आदि से तोड़े-फोड़े नहीं । इस प्रकार विवेक के साथ पृथ्वीकाय की यतना करे ।
1
(२) अप्काय नदी, तालाब, कूप, बावड़ी आदि जलाशयों के भीतर घुस कर स्नान करने से पानी दुर्गन्धित होता है, रोगकारी हो जाता है, उतनी दूर तक के त्रस और स्थावर जीव मर जाते हैं। कितनेक प्रज्ञानी लोग मरे हुए मनुष्य को स्वर्ग में पहुँचाने के उद्देश्य से उसके शरीर की राख और हड्डियों को तीर्थस्थान आदि के पानी में डालते हैं । कोई-कोई गरमागरम राख को ही पानी में डाल देते हैं। परिणामस्वरूप पानी गरम हो जाता है और उसमें रहे हुए मच्छ श्रादि पंचेन्द्रिय जीव भी मर जाते हैं तो दूसरे छोटे जीवों का तो कहना ही क्या है ! इसके अतिरिक्त राख में भी चार रहता है । उस क्षार से मिश्रित पानी का बेग जितनी दूर तक जाता है, उतनी दूर तक के जीव मारे जाते हैं। मरने वाला तो मरते ही अपने कर्मों के अनुसार स्वर्ग-नरक आदि किसी गति में चला जाता है । वहाँ के बाँधे हुए आयुष्य को पूरा भोगे विना उस गति से निकल नहीं सकता, यह ध्रुव सत्य है । ऐसी स्थिति में उसके निमित्त त्रस - स्थावर जीवों की हिंसा करने से क्या लाभ है ?
1
कितनेक लोग चन्द्र या सूर्य ग्रहण होने पर, घर के भीतर ढँक कर रक्खा हुआ, ग्रहण की छाया से बचा हुआ पानी तो फेंक देते हैं और जिस सरोवर पर ग्रहण की छाया पड़ी, उसके पानी को पवित्र मान कर घर में लेते हैं। यह कितनी विपरीत बुद्धि है । उनसे पूछना चाहिए कि अंगर में के पानी को ग्रहण लगा तो दूध, दही आदि पदार्थों को भी ग्रहण लगा होगा । फिर उन पदार्थों को क्यों नहीं फेंक देते हों ? मगर उन
घर
स्तुओं की कीमत लगती है और पानी मुफ्त में मिलता है । इसीलिए पानी का व्यय करने में बेदरकारी की जाती है ! उन्हें समझना चाहिए कि