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________________ * सागारधर्म-श्रावकाचार * ७७ और साँप-बिच्छू आदि जहरीले जानवरों की झपट में आ जाने एवं विषभषण आदि हो जाने से प्राण भी संकट में पड़ जाते हैं अथवा अकालमृत्यु अथीत-रात्रि में पानी रक्त के समान हो जाता है और अब मास के समान हो जाते हैं-रात्रि में भोजन करने वाले को तथा पानी पीने वाले को मांसभक्षण तथा रक्तपान करने के समान दोष लगता है, तो रात्रिभोजन कैसे किया जाय ? (महामारत, शान्तिपर्व) उदकं नैव पातव्यं, रात्रावेव युधिष्ठिर ! तपस्विना विशेषेण, गृहिणा च विवेकिना ।। अर्थात्-हे युधिष्ठिर ! विवेकवान् गृहस्थों को और विशेषतया तपस्वियों को रात्रि में पानी नहीं पीना चाहिए। ये रात्रौ सर्वदाऽऽहार, वर्जयन्ति सुमेधसः । तेषां पक्षोपवासस्य, फलं मासेन जायते ।। अर्थात्-जो बुद्धिमान् मनुष्य कभी भी रात्रिभोजन नहीं करते हैं, उन्हें प्रतिमांस एक पखवाड़े (१५ दिन) के उपवास का फल प्राप्त होता है । नैवाहुतिन च स्नानं, न श्राद्धं देवतार्चनम् । दानं नं विहितं रात्रौ, भोजनं तु विशेषतः ।। अर्थात्-रात्रि में देवता को आहुति (होम), स्नान, श्राद्ध, देवपूजन, दान-इतने काम नहीं करने चाहिए और भोजन तो खास तौर से नहीं करना चाहिए। हनाभिपद्मसंकोचण्डरोचेरभावतः।। अतो नक्तं न भोक्तव्यं, सूक्ष्मजीवादनादपि ॥ -आयुर्वेद । अर्थात्-सूर्य अस्त होने पर हृदयकमल और नाभिकमल संकुचित हो जाता है, अतः राजिभोजन रोगोत्पादक है। इसके अतिरिक्त भोजन के साथ छोटे-छोटे जीव भी लाने में भा जाते हैं । अतः रात्रिभोजन नहीं करना चाहिए । मेघा पिपीलिका हन्ति यूका कुर्याज्जलोदरम्, कुरुते मक्षिका वान्ति कुष्ठरोगं च कोलिका । कंटकं दारुखण्डं च वितनोति गलम्यथाम्. व्यञ्जनान्तर्निपतितं तालुविभ्यति वृश्चिकः॥ -योगशाख । अर्थात् रात्रि में भोजन करते समय भोजन में चिउटी भी जाय तो बुदिका नाश होता है, जूा जाय तो जलोदर रोग हो जाता है, मक्सी श्रीवाय तो गमन हो
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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