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________________ ७ ] ® जैन-तत्त्व प्रकाश भी हो जाती हैं। अतएव ऊपर बतलाये हुए कार्य रात्रि में नहीं करना चाहिए । (३) पाखाने में दिशा जाने से और मोरी, गटर आदि में पेशाब करने से असंख्यात सम्मूर्छिम जीवों का घात होता है। दुर्गन्ध से तथा रोगी मनुष्य के पेशाब पाखाने पर पेशाब-पाखाना हो जाने से गर्मी आदि भयानक बीमारियाँ हो जाती हैं । (४) खड्डे में, फटी भूमि में, राख, तुष, घास, गोवर आदि के ढेर पर पेशाव या पाखाना फिरने से उसके माश्रित रहे हुए त्रस जीवों का हनन हो जाता है । (५) विना देखे धोबी को कपड़े देने से, खाट, पलंग आदि पानी में डुबोने से, या उन पर गर्म पानी डालने से, उनके आश्रित रहे हुए खटमल आदि त्रस जीवों का घात हो जाता है। (६) दशहरा, दीपावली आदि पर्यों के अवसर पर जो चौमासे में आते हैंखटमल आदि जीव दीवारों आदि पर विशेष रूप से पाये जाते हैं । परन्तु उपयोग न रखते हुए, लोकरूढ़ि के अनुसार लीपना, छावना, धोना आदि क्रियाएँ करने से उनका घोत हो जाता है । (७) श्राटा, दाल, शाक, सुखी तरकारी, पापड़, बड़ी, मेवा मसाले, पकवान आदि वस्तुओं का बहुत दिनों तक संग्रह कर रखने से, उनमें त्रस जीवों की उत्पत्ति हो जाती है । उनको देखे विना काम में लाने से तथा खाने से उन जीवों का घात होता है । (5) चौमासे के दिनों में नमी अधिक होने से जमीन पर, छाणों में, लकड़ियों में, मिट्टी के वर्तनों में कुंथुवा आदि जीव बहुतायत से उत्पन्न हो जाते हैं। जाता है, झिपकली आ जाय तो कोढ़ हो जाता है, कोटा या जाय या लकड़ी का टुकड़ा श्रा जाय तो गला दुखने लगता है, भोजन में बिच्छू भा जाय तो वह तालु को भेद देता है। रात्रिभोजन करने से ऐसी-ऐसी अनेक भयंकर हानियाँ होती हैं। इसलिए जैनशाखों में तथा अजैन शास्त्रों में भी रात्रिभोजन का निषेध किया गया है। किसी ने चिड़ी कमेड़ी कामला, रात चुगन नहिं जाय। नर तनधारी मानवी, रात पड़े क्यों खाय ।। अन्धा जीमन रात का, करे अधर्मी जीव । . किंचित् जीवन के लिए, देय नरक की नीव ॥
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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