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* जैन-तत्त्व प्रकाश *
श्रावक के १२ व्रत
जिस प्रकार तालाब के नाले का निरोध कर देने से पानी का आगमन रुक जाता है, उसी प्रकार हिंसा आदि का निरोध कर देने से पाप का निरोध हो जाता है। इसी को व्रत कहते हैं । व्रतों का समाचरण दो प्रकार से किया जाता है जो हिंसा आदि का सर्वथा त्याग करके साधु बनते हैं वे सर्वव्रती (महाव्रती) कहलाते हैं और जो आवश्यकतानुसार छूट रख कर-आंशिक रूप से-हिंसा आदि पापों का त्याग करते हैं, वे अणुव्रती-श्रावक कहलाते हैं । उन्हें देशव्रती भी कहते हैं । देशवती के चारित्र में पाँच अणुव्रतों, तीन गुणव्रतों और चार शिक्षाव्रतों का-इस प्रकार बारह व्रतों का समावेश होता है। आगे इन्हीं का विस्तारपूर्वक कथन किया जाता है:
पाँच अणुव्रत
जिस प्रकार पिता की अपेक्षा पुत्र छोटा होता है, उसी प्रकार साधु के पाँच महाव्रतों की अपेक्षा, वही व्रत एक देश से धारण किये जाने के कारण अणुव्रत कहलाते हैं। अणु अर्थात् श्रात्महित के कर्ता होने से भी इन्हें अणुव्रत कहते हैं । अथवा अणु अर्थात् कर्मों को तथा पाप को पतला करने वाले होने से भी इन्हें अणुव्रत कहते हैं । यह अणुव्रत पाँच हैं।
पहला अणुव्रत-स्थूल प्राणातिपातविरमण
पहले अणुव्रत में स्थूल हिंसा से अर्थात् त्रस जीवों की हिंसा से निवृत्त होना आवश्यक है।
जीव दो प्रकार के होते हैं-(१) स्थावरजीव और (२) त्रस जीव । स्थावर जीपों की हिंसा सूरम हिंसा है और उसजीवों की हिंसा स्थूल हिंसा