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या तिरते किसी भी यान ( सवारी) का सेवन नहीं करते, जो वनस्पति का स्वयं श्रारम्भ नहीं करते, स्त्रीकथा आदि चार विकथाएँ नहीं करते, तू बे मृत्तिका के सिवाय किसी भी धातु का पात्र नहीं रखते, पवित्री (मुद्रिका) के अतिरिक्त अन्य आभरण नहीं धारण करते, गेरुए रंग के सिवाय अन्य रंग के वस्त्र नहीं रखते, गोपीचन्दन के सिवाय किसी अन्य वस्तु का तिलक छापा नहीं करते । ऐसा आचार पालने वाले ब्राह्मण जाति के आठ तपस्वी हुए । उनके नाम यह है : - (१) कृष्ण (२) करकट (३) श्रंचड (४) पाराशर (५) कणिय
* सम्यक्त्व **
* श्रम्बड संन्यासी ने कंपिलपुर में भगवान् महावीर स्वामी के उपदेश से श्रावक धर्म धारण किया था, किन्तु अपने मतावलम्बियों को जैनधर्मी बनाने के उद्देश्य से अपना पहले वाला वेष नहीं बदला था। विनीत एवं भद्रिक भाव से बेले बेले पारण करने से लथा दोनों हाथ ऊँचे करके सूर्य की आतापना लेने से अनेक रूप बना लेने की विक्रियालब्धि और अवधिज्ञानलब्धि प्राप्त हुई थी। पारण करने के लिए वह सौ घरों का आमंत्रण स्वीकार करता और अपने सौ रूप बनाकर सौ घरों में पारणा करता था। ( श्रावक को पारणा कराने में धर्म होता है, तभी तो सौ सौ घर वाले उसे पारणा के लिए आमंत्रण देते थे ।) अम्ब समाधिमरण करके पाँचवें देवलोक में देव हुए। यागे महाविदेह क्षेत्र में मनुष्य होकर मोक्ष प्राप्त करेंगे ।
अम्बड़ संन्यासी के ७०० शिष्य थे। वे ज्येष्ठ के महीने में एक बार कैंपिलपुर से पुरिमतालपुर जा रहे थे। उनके पास जो पानी था, वह समाप्त हो गया। नया पानी लेने की आज्ञा देने वाला कोई गृहस्थ उस अरण्य में नहीं मिला । संन्यासी प्यास से व्याकुन्न हो कर आपस में कहने लगे- अब क्या करना चाहिए १ फिर भी अपने व्रत के भंग हो जानेके भय से किसी ने आज्ञा नहीं दी। तब पास ही गंगा नदी की तपी हुई बालू में बैठ कर अरिहन्त, सिद्ध और धर्मगुरु को 'नमुत्थ' के पाठ से नमस्कार कर के उन्होंने तीन करण तीन योग से अठारह पापस्थानकों का त्याग किया और चारों प्रकार के आहार का परित्याग कर दिया इस प्रकार माविमरण करके वे भी पाँचवे ब्रह्मदेवलोक में दम सागरोपम की
युवाले देव हुए।
पाठको ! पालन की हढ़ता का विचार कीजिए ! यहाँ कोई कह सकता है कि, जीव रक्षा में धर्म होता तो सात सौ सन्यासियों में से कोई एक गृहस्थ होकर शेष को पानी ग्रहण करने की अनुमति दे देता; मगर उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया ? ऐसा कहने वालों को उत्तर देना चाहिए कि मान लो किमी कमाई ने एक हजार गायें मारने के लिए खड़ी की, वहाँ कसाई को बचाने की भावना से किमी ने कहा- भाई, हिंसा मत कर । तच कसाई ने उत्तर दिया- अगर तुम एक ग्राम मांस का खालो तो मैं हिंसा का यह पाप नहीं करूँगा ।
कहिए, क्या वह उपदेशक मांस खाएगा ? नहीं खाएगा । यद्यपि वह कमाई को पाप से aurat aori है फिर भी अपनी मर्यादा को भग नहीं करेगा। इसी प्रकार जीवों को मरने से