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(४) मान - मिथ्यादृष्टियों का सम्मान न करे । मिथ्यादृष्टि का सन्मान करने से, प्रकारान्तर से मिथ्यात्व का सन्मान होता है । ऐसा सन्मान होते देखकर सम्यग्दृष्टियों का मन मिथ्यात्व की ओर आकर्षित होता है, वे शिथिल बनते हैं और कदाचित् मिथ्यादृष्टि भी बन जाते हैं। हाँ, सम्यग्दृष्टि का सम्मान-सत्कार अवश्य करना चाहिए, जिससे वे इदधर्मी बनें और सम्यक्त्व का मान-माहात्म्य बढ़ता देखकर मिथ्यावियों का मन भी सम्यक्त्व की ओर आकर्षित हो और वे भी सम्यक्त्व को स्वीकार करें ।
* सम्यक्त्व *
(५) वन्दना - मिथ्यादृष्टियों के आडम्बर की, सम्पत्ति की, एकता या संगठन की, हिंसक क्रियाओं की प्रशंसा न करे और सम्यक्त्वी के किये हुए धर्मकृत्य की, उदारता श्रादि गुणों की पुनः पुनः प्रशंसा करे । गुणवानों के गुणों को दिपावे |
(६) नमस्कार - मिथ्यात्वी को नमस्कार न करे । जिस प्रकार शंख श्रावक की स्त्री उप्पला बाई ने पोक्खली श्रावक को तिक्खुत्तो के पाठ से नमस्कार किया है, उसी प्रकार जो अपने से गुणों में वृद्ध हों, वयोवृद्ध हों, ऐसे स्वधर्मियों को यथायोग्य नमस्कार करना चाहिए । स्वधर्मियों के साथ सदैव विनयपूर्वक नम्रतापूर्वक व्यवहार करना चाहिए। जैसे वैष्णव लोग जयगोपाल कहकर पारस्परिक शिष्टाचार - नमस्कार करते हैं, उसी प्रकार सम्यक्त्व को भी 'जय जिनेन्द्र' शब्द का उच्चारण करके आपस में नमस्कार करना चाहिए । यह सम्यक्त्वी का अपने धर्म को दर्शाने का चिह्न है । सम्यक्त्व के लिए यह उचित नहीं है कि वह जयगोपाल, सलाम यादि शब्दों का उच्चारण करके अपने धर्म को लुप्त, गुप्त या दूषित करे ।
जिस प्रकार धनवान् अपने धन की चोर आदि से रक्षा करने का प्रयत्न करते हैं, उसी प्रकार सम्यक्त्वी अपने सम्यक्त्व रूप धन की, मिथ्या
रूप चोर से रक्षा करने के लिए सदैव सतर्क और सावधान रहे । सम्यक्व के गुणों की वृद्धि करे और सम्यग्दृष्टियों का उत्साह बढ़ावे । इसी प्रयोजन से छह यतनाओं का वर्णन किया गया है ।