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* जैन-तत्व प्रकाश
अन्यान्य पदार्थ क्षण-क्षण पलटते रहते हैं, ऐसे ही आत्मा भी क्षण-क्षण में बदलता रहता है अर्थात् नया-नया उत्पन्न होता रहता है । इस कारण आत्मा नित्य है, शाश्वत है ।
ऐसे लोगों को समझना चाहिए संसार का कोई भी पदार्थ न तो सर्वथा नष्ट होता है और न कभी नवीन उत्पन्न ही होता है । संसार में जितने भी जड़ पदार्थ हैं, सदा उतने ही रहते हैं। न कोई घटता है, न बढ़ता है । लोग जिसे पदार्थ का उत्पन्न होना कहते हैं, वह वास्तव में रूपान्तर होना ही है । इसी प्रकार किसी पदार्थ का नष्ट होना भी रूपान्तर होना ही है । कल्पना कीजिए, आपके पास सोने का कड़ा है। उसे मिटवा कर आपने हार बनवा लिया | अब आप कहते हैं कि कड़ा नष्ट हो गया और हार । उत्पन्न हो गया । मगर वास्तव में कड़ा शून्य नहीं बन गया है और न शून्य से हार की उत्पत्ति हुई है। जो सोना पहले कड़े के रूप में था, वही हार के रूप में परिणत हो गया है। दोनों अवस्थाओं में सोना ज्यों का त्यों है। किसी में ऐसी शक्ति नहीं है जो शून्य से हार बना दे । इस उदाहरण के आधार पर अन्य वस्तुओं के सम्बन्ध में विचार करने पर भी यही प्रतीत होगा कि जो वस्तु मौजूद है, उसका सर्वथा नाश कदापि नहीं होता और जो सर्वथा नहीं है, उसकी उत्पत्ति कभी नहीं हो सकती । कहा भी है:
नासतो विद्यते भावो नाभावो जायते सतः ।
अर्थात् असत् कभी सत् नहीं हो सकता और सत् पदार्थ का कभी नाश नहीं हो सकता। ऐसी स्थिति में आत्मा का अस्तित्व स्वीकार करके फिर उसका नाश मान लेना सर्वथा अनुचित है ।
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रूपान्तर पदार्थों में अवश्य होता है, मगर अपनी-अपनी जाति से विरुद्ध नहीं होता । अर्थात् एक द्रव्य, दूसरा द्रव्य नहीं बन सकता । जड़ का रूपान्तर जड़ ही होता है और चेतन का रूपान्तर चेतन ही होता है । - जड़ कभी चेतना नहीं बनता और चेतन कभी जड़ नहीं बन सकता । जगत् में जितने जीव हैं, अनन्त काल तक उतने ही रहेंगे और जितने जड़ परमाखु