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* सागारधर्म-श्रावकाचार *
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(११) वैराग्यवान्-धन-सम्पत्ति और कुटुम्ब-परिवार 'आदि के प्रति गहरी आसक्ति नहीं रखता तथा प्रारंभ और परिग्रह से निवृत्त होने का इच्छुक होता है।
(१२) एकान्त आर्य-श्रावक बाह्याभ्यन्तर एक सरीखी शुद्ध और सरल वृत्ति वाला होता है। सर्वथा निष्कपट होने से एकान्त आर्य कहलाता है।
__(१३) सम्यग्मार्गी-सम्यग्ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूप.मार्ग में चलने के कारण श्रावक सम्यग्मार्गी होता है ।
(१४) सुसाधु-श्रावक ने परिणामों से तो अव्रत की क्रिया का सर्वथा निरुधन कर दिया होता है । सिर्फ सांसारिक कार्यों के लिए जो द्रव्यहिंसा करता है, वह भी अनिच्छा से, निरुपाय होकर,* और उदासीन भाव से करनी पड़ती है। उसे करता हुआ भी वह धर्म की वृद्धि करता रहता है। मनः आत्मसाधना करने वाला होने से अर्थात् मोक्षमार्ग का. साधक -होने से श्रावक, सुसाधु कहलाता है।
(१५) सुपात्र-जैसे सुवर्ण के पात्र में सिंहनी का दूध ठहर सकता है, उसी प्रकार श्रावक में सम्यक्त्व आदि सद्गुण सुरक्षित रह सकते हैं । इस करण वह सुपात्र कहलाता है।
* हिंसा-अहिंसा की चौभंगी:
(१) द्रव्य से हिंसा, और भाव से हिंसा-जैसे कसाई और पारधी द्वारा की जाने वाकी हिसा । ...
(२) द्रन्य से हिंसा, भाव से अहिंसा-जैसे पंचमहावतधारी, समितियान साधु द्वारा आहार-विहार आदि करने में हो जाने वाली हिंसा। '' (३) द्रव्य से अहिंसा, भाव से हिंसा-जैसे अभव्य यो द्रव्यलिंगी साधु प्रमार्जन करके गमनागमन आदि क्रिया करता है। IFE TE) द्रव्य से अहिंसा और भाव से अहिंसा-जैसे अप्रमादी साधु तथा केली